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9 सूत्रों के माध्यम से प्रमाण के विषय का वर्णन किया गया है। पंचम परिच्छेद में 3 सूत्रों के द्वारा प्रमाण के फल का वर्णन करते हुए अंतिम षष्ठ परिच्छेद में 74 सूत्रों के द्वारा प्रमाणाभास, प्रत्यक्षाभास, परोक्षाभास, अनुमानाभास, संख्याभास, विषयाभास तथा फलाभास आदि का वर्णन किया है।
परीक्षामुख पर टीका ग्रन्थ :
इस ग्रन्थ पर अनेक संस्कृत टीकाओं का सृजन आचार्यों ने किया है। जिनका उल्लेख निम्न प्रकार है
1. प्रमेयकमलमार्तण्ड - आचार्य प्रभाचन्द्र द्वारा रचित बृहत् काय व्याख्या । इस ग्रन्थ का प्रकाशन हिन्दी टीका के साथ 3 खण्डों में किया जा चुका है । सम्प्रति अनुपलब्ध है।
2. प्रमेयरत्नमाला - आचार्य लघुअनंतवीर्य द्वारा रचित मध्यम परिमाण की सरल एवं विशद व्याख्या है। इसका प्रकाशन भी हिन्दी टीका के साथ अनेक स्थानों से हुआ है।
3. प्रमेयरत्नालंकार - तार्किक विद्वान् श्री चारुकीर्ति भट्टारक (अठारहवीं सदी) द्वारा रचित व्याख्या है। इस ग्रन्थ का हिन्दी अनुवाद होना चाहिए। मूल टीका मैसूर विश्वविद्यालय से बहुत पहले प्रकाशित हुई है । 4. न्यायमणिदीपिका - श्री अजितसेन विद्वान् द्वारा रचित व्याख्या । इसका सम्पादन- अनुवाद एवं प्रकाशन होना चाहिए ।
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5. अर्थप्रकाशिका
व्याख्या, अद्यतन अप्रकाशित ।
6. प्रमेयकंठिका - श्री शांतिवर्णी द्वारा परीक्षामुख के प्रथम सूत्र पर लिखी व्याख्या |
उपरोक्त संस्कृत टीकाओं के अलावा श्री पं. जयचन्द्रजी छाबड़ा की भाषा वचनिका भी अपना महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है। परीक्षामुख के सूत्रों को माध्यम बनाकर प्रमेयकमलमार्तण्ड ग्रन्थ की विषय वस्तु को भी सरल हिन्दी भाषा में प्रतिपादित किया है, प्रो. उदयचन्द्र जैन सर्वदर्शनाचार्य, वाराणसी ने । जो प्रमेयकमलमार्तण्ड परिशीलन के नाम से प्रकाशित हुआ है।
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श्री विजयचन्द्र नामक विद्वान् द्वारा रचित
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