Book Title: Parikshamukham
Author(s): Manikyanandi Aacharya, Vivekanandsagar, Sandip
Publisher: Anekant Gyanmandir Shodh Samsthan

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Page 13
________________ सूत्रकार आचार्य माणिक्यनन्दि - आचार्य माणिक्यनन्दि नन्दी परम्परा के प्रतिष्ठित आचार्य हुए हैं। आपके गुरु का नाम रामनन्दि था। आपका समय डॉ. दरबारीलाल कोठिया न्यायाचार्य ने 1028 ईस्वी सिद्ध किया है। आप जैनदर्शन के साथ इतर दर्शनों के भी पारंगत तार्किक शिरोमणि थे। आप एक मात्र कृति परीक्षामुख की रचना कर जैन न्याय जगत् में अमर हो गये। उत्तरवर्ती अनेक आचार्यों ने अत्यन्त श्रद्धा के साथ आपके लिए उच्च सम्बोधन देते हुए स्मरण किया है। इस प्रकार परीक्षामुख ग्रन्थ एवं ग्रन्थकार विषयक जानकारी प्राप्त करके पाठकगण ज्ञान रश्मियों से अपने तिमिर को हटाकर ज्ञानकोश को समृद्ध करेंगे। न्याय ग्रन्थों की परम्परा को पुनर्जीवित किया जावे -आज के समय में न्याय जैसे शुष्क, जटिल विषय को कोई पढ़ना नहीं चाहता है। त्यागी वर्ग द्वारा भी इन ग्रन्थों का विशेष स्वाध्याय नहीं किया जा रहा है और ये ग्रन्थ अलमारियों में रखे हुए चूहों और दीमकों के शिकार बनते जा रहे हैं। इस बात को सदैव स्मरण रखना चाहिए कि न्याय ग्रन्थों के अध्ययन किये बिना आध्यात्मिक ग्रन्थों के रहस्यों को समझ नहीं सकते हैं। अतः अध्यात्म के रहस्य को समझने के लिए प्रमाण, नय स्वरूप न्याय ग्रन्थों की ओर हमें रुचि बनाना चाहिए। इसके लिए आवश्यक है कि परीक्षामुख, न्यायदीपिका जैसे लघु ग्रन्थों के शिविर आयोजित किये जाना चाहिए। प्रस्तुत प्रकाशन की उपयोगिता - परीक्षामुख सटीक का प्रकाशन पं. मोहनलाल शास्त्री, जबलपुर के सम्पादकत्व में पूर्व में हुआ था। उक्त प्रकाशन में सूत्रों के साथ संस्कृत टीका भी दी हुई थी किन्तु उसमें उल्लेख नहीं किया गया है कि उसके टीकाकार कौन हैं? पुस्तक अनुपलब्ध थी। समय की आवश्यकता थी कि इसका प्रकाशन होना चाहिए। अतः इस दिशा में ज्ञानाराधना में सतत् अध्यवसायी, श्रद्धेय क्षुल्लक 105 विवेकानंदजी ने कदम बढ़ाया और सूत्रों का शास्त्रार्थ, संस्कृत टीका का सरलार्थ एवं अंत में सूत्र सम्बन्धित प्रश्नोत्तरी से इस कृति को जन सामान्य के लिए पठनीय बना दिया है। आशा है पाठकगण इस कृति से भरपूर लाभान्वित होंगे। ब्र. संदीप 'सरल' 11

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