Book Title: Parikshamukham
Author(s): Manikyanandi Aacharya, Vivekanandsagar, Sandip
Publisher: Anekant Gyanmandir Shodh Samsthan

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Page 19
________________ माणौ, प्रकृष्टौ माणौ यस्य सः प्रमाणः। उत्कृष्ट लक्ष्मी और उत्कृष्ट वाणी सहित व्यक्ति अरहंत भगवान् ही हैं। इस प्रकार यहाँ प्रमाण शब्द का अर्थ अरिहंत हुआ। 7. आचार्य भगवन ने किसे कहने की प्रतिज्ञा की है ? प्रमाण और प्रमाणाभास को कहने की प्रतिज्ञा की है। 8. प्रमाण और प्रमाणाभास से क्या होता है ? प्रमाण से अभीष्ट अर्थ की सम्यक् प्रकार सिद्धि होती है और प्रमाणाभास से इष्ट अर्थ की संसिद्धि नहीं होती है। १. प्रमाण और प्रमाणाभास किसे कहते हैं ? सम्यग्ज्ञान को प्रमाण और मिथ्याज्ञान को प्रमाणाभास कहते हैं। 10. पदार्थ किसे कहते हैं ? पद के अर्थ को पदार्थ कहते हैं अथवा क्षायोपशमिक एवं क्षायिकज्ञान . से जो भी विश्व में देखने और जानने में आता है, वह सब पदार्थ है। 11. 'लघीयस' से क्या प्रयोजन है ? लघीयस शिष्यों के प्रयोजन से कहा जा रहा है। लाघव तीन प्रकार का होता है बुद्धिकृत, शरीरकृत, कालकृत। 12. 'अल्प' से क्या प्रयोजन है ? यद्यपि यह लक्षण ग्रन्थ की अपेक्षा अल्प है तथापि वह अर्थ की दृष्टि से महान् है। 13. लक्षण किसे कहते हैं ? 1. मिले हुए बहुत से पदार्थों में से किसी एक पदार्थ को जुदा करने वाले हेतु को लक्षण कहते हैं। 2. जिसके अभाव में द्रव्य का ही अभाव हो जाए वही उसका लक्षण 3. जिसके द्वारा पदार्थ लक्षित किया जाता है वह भी लक्षण है। 17

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