Book Title: Panchvastuka Granth
Author(s): Haribhadrasuri, 
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 15
________________ गाथाङ्कः Jain Educational ध्यानगणना भिग्रह प्रत्राजन मुण्डनमनसापन्नकारणप्रतिकर्मभक्त पथाश्च द्वाराणि, जंघाबलहानावविहारः १५२३ - १५५३ पारिहारिकयथालन्दिकयोः कल्पेऽतिदेशो नानात्वं च १५५४ - १५७१ जिनस्थविरकल्पयोर्यथायथं प्राधान्यं १५७२ - १६२७ संलेखनाभावनाया आवश्यकता नात्महत्या भा वसंलेखनाभावना अतीचारवर्जनं संलेखनाफलं विधिः संलेखनांगीकारः पादपोगमनं इंगिनीमरणं भक्तपरिज्ञा १६१८ - १६७० कान्दर्पिक्याद्या अशुभभावनाः ( २५ ) सप्रभे गाथाङ्कः दाः, ततो दुर्गतिरनन्तः संसारश्च, एतन्निरोधे सञ्चरणं, तद्वतां चरणरहितसहितता च १६७१ - १७०० विकटना प्रत्याख्यानं मैत्र्यादि देहपीडा समाधिः शुभध्यानश्ये संविप्रपाक्षिकता क्लिष्टचित्तत्यागः ज्ञानादीनां दुर्लभता भावशल्यत्यागः आराधकलक्षणं आराधकभेदाः सम्यक्त्वादितो लेश्याशुद्धावाराघकता आराधनाफलं १७०१ - १७१७ पञ्चवस्तुषु त्रैकालिकमाराधनाविराधनाफलं आ गम मूलत्वं धर्मस्य श्रुतबाह्य स्यानादरः शक्त्यनुरूपो यत्न उद्धारहेतुः ॥ इति श्रीपञ्चवस्तुग्रन्थरत्नस्य बृहद्विषयानुक्रमः ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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