Book Title: Pancham Shataknama evam Saptatikabhidhan Shashtha Karmgranth
Author(s): Chandraguptasuri
Publisher: Jain Atmanand Sabha

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Page 6
________________ ना चैत्र शुदि 1 ने दिवसे थयो हतो। तेमनुं पोतानुं धन्य नाम भाई चुनीलाल राखवामां आव्युं हतुं / तेमना पितानुं नाम मलुकचंद अने मातानुं नाम जमनाबाई हतुं / तेमनी ज्ञाति वीशापोरवाड हती / तेओ पोता साथे चार भाई हता अने त्रण बहेनो हती / तेमनुं कुटुंब घणुंज खानदान हतुं / गृहस्थपणानो तेमनो अभ्यास ते जमाना प्रमाणे गूजराती सात चोपडीओ जेटलो हतो / व्यापारादिमा उपयोगी हिसाब आदि बाबतोमा तेओश्री हुशियार गणाता हता। धर्मसंस्कार अने प्रव्रज्या-छाणी गाम स्वाभाविक रीते ज धार्मिकसंस्कारप्रधान क्षेत्र होई भाई श्रीचुनीलालमा धार्मिक संस्कार प्रथमथी ज हता अने तेथी तेमणे प्रतिक्रमणसूत्रादिने लगतो योग्य अभ्यास पण प्रथमथी ज कों हतो। छाणी क्षेत्रनी जैन जनता अतिभावुक होई त्यां साधु-साध्वीओनुं आगमन अने तेमना उपदेशादिने लीधे लोकोमां धार्मिक संस्कार हम्मेशां पोषाता ज रहेता / ए रीते भाई श्रीचुनीलालमां पण धर्मना दृढ संस्कारो पड्या हता। जेने परिणामे पूज्यपाद प्रातःस्मरणीय अनेकगुणगणनिवास शान्तजीवी परमगुरुदेव श्री 1008 श्रीप्रवर्तकजी महाराज श्रीकान्तिविजयजी महाराजनो संयोग थतां तेमना प्रभावसम्पन्न प्रतापी वरद शुभ हस्ते तेमणे डभोई गाममा वि.सं. 1946 ना जेठ वदि. 10 ने दिवसे शिष्य तरीके प्रव्रज्या अंगीकार करी अने तेमनु शुभ नाम मुनि श्रीचतुरविजयजी राखवामां आव्यु। विहार अने अभ्यास-दीक्षा लीधा पछी मनो विहार पूज्यपाद गुरुदेव श्रीप्रवर्तकजी महाराज साथे पंजाब तरफ थतो रह्यो अने ते साथे क्रमे क्रमे अभ्यास पण आगळ वधतो रह्यो / शरुआतमां साधुयोग्य आवश्यकक्रियासूत्रो अने जीवविचार आदि प्रकरणोनो अभ्यास कर्यो / ते वखते पंजाबमा अने खास करी ते जमानाना साधुवर्गमा व्याकरणमा मुख्यत्वे सारस्वत पूर्वाध अने चन्द्रिका उत्तरार्धनो प्रचार हतो ते मुजब तेओश्रीए तेनो अभ्यास कर्यो अने ते साथे काव्य, वाग्भटालंकार, श्रुतबोध आदिनो पण अभ्यास करी लीधो। आ रीते अभ्यासमां ठीक ठीक प्रगति अने प्रवेश थया बाद पूर्वाचार्यकृत संख्याबन्ध शास्त्रीय प्रकरणो,-जे जैन आगमना प्रवेशद्वार समान छे,-नो अभ्यास कर्यो / अने तर्कसंग्रह तथा मुक्तावली, पण आ दरमियान अध्ययन कर्यु। आ रीते क्रमिक सजीव अभ्यास अने विहार बन्ने य कार्य एकी साथे चालता रह्यो / उपर जणाववामां आव्युं तेम पूज्यपाद गुरुदेव श्रींचतुरविजयजी महाराज क्रमे क्रमे सजीव अभ्यास थया पछी ज्या ज्या प्रसंग मळ्यो त्या त्यां ते ते विद्वान् मुनिवरादि पासे तेम ज पोतानी मेळे पण शास्त्रोनुं अध्ययन वाचन करता रह्या / भगवान् श्रीहेमचन्द्राचार्य कछु छे के " अभ्यासो हि कर्मसु कौशलमावहति" ए मुजब पूज्यवर श्रीगुरुदेव शास्त्रीय वगेरे विषयमा आगळ वधता गया अने अनुक्रमे कोइनीये मदद सिवाय स्वतंत्र रीते महान् शास्त्रोनो स्वाध्याय प्रवर्त्तवा लाग्यो / जेना फळरूपे आपणे " आत्मानन्द जैन ग्रन्थरत्न. माळा" ने आजे जोइ शकीए छीए।

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