Book Title: Pancham Shataknama evam Saptatikabhidhan Shashtha Karmgranth
Author(s): Chandraguptasuri
Publisher: Jain Atmanand Sabha

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Page 17
________________ प्रस्तावना / ते छतां शोध अने अवलोकनने अंते जे काइ अल्प-स्वल्प सामग्री प्राप्त थई छे तेने आधारे ए महापुरुषनो अहीं परिचय कराववामां आवे छे / ____ आचार्य श्रीमलयगिरिए पोते पोताना ग्रन्थोना अंतनी प्रशस्तिमां" यदवापि मलयगिरिणा, सिद्धिं तेनाश्रुतां लोकः / / " एटला सामान्य नामोल्लेख सिवाय पोता अंगेनी बीजी कोई पण खास हकीकतनी नोंध करी नथी / तेम ज तेमना समसमयभावी के पाछळ थनार लगभग बधा य ऐतिहासिक ग्रन्थकारोए सुद्धा आ जैनशासनप्रभावक आगमज्ञधुरन्धर सैद्धान्तिक समर्थ महापुरुषमाटे मौन अने उदासीनता ज धारण कयाँ छ / फक्त पंदरमी सदीमां थएला श्रीमान् जिनमण्डनगणिए तेमना कुमारपालप्रबन्धमा ' आचार्य श्रीहेमचन्द्र विद्यासाधनमाटे जाय छे' ए प्रसंगमा आचार्य श्रीमलयगिरिने लगती विशिष्ट बाबतनो उल्लेख कर्यो छे; जेनो उतारो अहीं आपवामां आवे छे " एकदा श्रीगुरूनापृच्छ्यान्यगच्छीयदेवेन्द्रसूरि-मलयगिरिभ्यां सह कलाकलापकौशलाद्यर्थ गौडदेशं प्रति प्रस्थिताः खिल्लूरग्रामे च त्रयो जना गताः / तत्र ग्लानो मुनिवैयावृत्यादिना प्रतिचरितः / स श्रीरैवतकतीर्थे देवनमस्करणकृतातिः / यावद् प्रामाध्यक्षश्राद्धेभ्यः सुखासनं प्रगुणीकृत्य ते रात्रौ सुप्तास्तावत् प्रत्यूषे प्रबुद्धाः स्वं रैवतके पश्यन्ति / शासनदेवता प्रत्यक्षीभूय कृतगुणस्तुतिः ' भाग्यवतां भवतामत्र स्थितानां सर्व भावि ' इति गौडदेशे गमनं निषिध्य महौषधीरनेकान् मन्त्रान् नाम-प्रभावाद्याख्यानपूर्वमाख्याय स्वस्थानं जगाम / एकदा श्रीगुरुभिः सुमुहूर्ते दीपोत्सवचतुर्दशीरात्रौ श्रीसिद्धचक्रमन्त्रः साम्नायः समुप. दिष्टः। स च पद्मिनीखीकृतोत्तरसाधकत्वेन साध्यते ततः सिध्यति, याचितं वरं दत्ते, नान्यथा। x x x x x ते च त्रयः कृतपूर्वकृत्याः श्रीअम्बिकाकृतसान्निध्याः शुभध्यानधीरधियः श्रीरैवतकदैवतदृष्टौ त्रियामिन्यामाह्वाना-ऽवगुण्ठन-मुद्राकरण-मन्त्रन्यास-विसर्जनादिभिरुपचारैर्गुरूक्तविधिना समीपस्थपद्मिनीस्त्रीकृतोत्तरसाधकक्रियाः श्रीसिद्धचक्रमन्त्रमसाधयन् / तत इन्द्रसामानिकदेवोऽस्याधिष्ठाता श्रीविमलेश्वरनामा प्रत्यक्षीभूय पुष्पवृष्टिं विधाय 'स्वेप्सितं वरं वृणुत' इत्युवाच / ततः श्रीहेमसरिणा राजप्रतिबोधः, देवेन्द्रसरिणा निजावदातकरणाय कान्तीनगर्याः प्रासाद एकरात्रौ ध्यानबलेन सेरीसकग्रामे समानीत इति जनप्रसिद्धिः, मलयगिरिमरिणा सिद्धान्तवृत्तिकरणवर इति / त्रयाणां वरं दत्त्वा देवः स्वस्थानमगात् / " जिनमण्डनीय कुमारपालप्रबन्ध पत्र 12-13 // भावार्थ-आचार्य श्रीहेमचन्द्रे गुरुनी आज्ञा लई अन्यगच्छीय श्रीदेवेन्द्रसूरि अने श्रीमलयगिरि साथे कळाओमां कुशळता मेळववा माटे गौडदेश तरफ विहार कर्यो / रस्तामां आवता खिलूर गाममां एक साधु मांदा हता तेमनी त्रणे जणाए सारी रीते

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