Book Title: Pancham Shataknama evam Saptatikabhidhan Shashtha Karmgranth
Author(s): Chandraguptasuri
Publisher: Jain Atmanand Sabha

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Page 16
________________ प्रस्तावना। ज होत तो भाष्यकार चूर्णिकार आदि प्राचीन प्रन्थकारोना प्रन्थोमां जेम शतक सप्ततिका कर्मप्रकृति आदि ग्रन्थोना नामनो साक्षी तरीके उल्लेख मळे छे तेम पंचसंग्रह जेवा प्रासादभूत ग्रन्थना नामनो उल्लेख पण जरूर मळवो जोइतो हतो / परंतु एवो उल्लेख क्यांय जोवामां नथी आवतो ए एक सूचक वस्तु छे, अने आ उपरथी आपणे ए अनुमान करी शकीए छीए के ' सप्ततिकाना प्रणेता पंचसंग्रहकार करतां कोई जुदा ज आचार्य छे के जेमनु नाम आपणे जाणता नथी, अने ते प्राचीनतम आचार्य छे'। सप्ततिकानो रचनाकाळ-भगवान् श्रीजिनभद्रगणि क्षमाश्रमणे तेमना विशेषणवती प्रन्थमा सिसरि कर्मग्रन्थमा आवता विषयने अंगे चर्चा करी छे त्यां सित्तरि प्रकरणना नामनो उल्लेख कर्यो छे एटले आ प्रकरण महाभाष्यकार श्रीजिनभद्रगणि क्षमाश्रमणना काळ पहेलां रचाई चूक्युं हतुं ए निर्विवाद हकीकत छे / भगवान् श्रीजिनभद्रगणिनो समय विक्रमनी सातमी सदीनो गणाय छे एटले ए पूर्वे आ प्रकरण रचायुं हतुं एम मानवामां कशी हरकत नथी। अहीं साथे साथे ए वात ध्यानमा रहे के महत्तर पद अने गर्गर्षि सिद्धर्षि पार्श्वर्षि चन्द्रर्षि आदि जेवां ऋषिपदान्त नामो सामान्य रीते पाछला जमानानां होई सित्तरि प्रकरणनी रचनानो समय अने चन्द्रर्षिमहत्तर ए नामनो सम्बन्ध पण विषमता भर्यो छ / ए कारणसर पण सित्तरिना प्रणेता चन्द्रर्षि महत्तर ठरता नथी / सित्तरिप्रकरणकारविषे आ करता विशेष अमे अत्यारे कशुं ज कही शकता नथी / टीकाकार आचार्य श्रीमलयगिरि .. सित्तरिटीकाना प्रणेता आचार्य श्रीमलयगिरि छे ए आपणे टीकाना अंतमां आवता नामोल्लेख परथी जाणी शकीए छीए / एमनो शक्य परिचय अहीं कराववामां आवे छे / गुणवंती गूजरातनी गौरववंती विभूतिसमा, समग्र जैन परम्पराने मान्य, गूर्जरेश्वर महाराज श्रीकुमारपालदेवप्रतिबोधक महान् आचार्य श्रीहेमचन्द्रना विद्यासाधनाना सहचर, भारतीय समग्र साहित्यना उपासक, जैनागमज्ञशिरोमणि, समर्थ टीकाकार, गूजरातनी भूमीमां अश्रान्तपणे लाखो श्लोकप्रमाण साहित्यगंगाने रेलावनार आचार्य श्रीमलयगिरि कोण हता? तेमनी जन्मभूमी, ज्ञाति, माता-पिता, गच्छ, दीक्षागुरु, विद्यागुरु बगेरे कोण हता ? तेमना विद्याभ्यास, ग्रन्थरचना अने विहारभूभीनां केन्द्रस्थान कयां हतां ? तेमनो शिष्यपरिवार हतो के नहि ? इत्यादि दरेक बाबत आजे लगभग अंधारामांज छे / "सयरीए मोहबंधट्ठाणा पंचादओ कया पंच / अनियट्टिणो छलुत्ता, णवादओदीरणापगए // 10 // सरीयए दो विगप्पा, सम्मामिच्छं समोहबंधम्मि / भणिया उईरणाए, चत्तारि कहण्णु होजाहि? // 9 // इत्यादिकाः गाथाः॥

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