Book Title: Pancham Shataknama evam Saptatikabhidhan Shashtha Karmgranth
Author(s): Chandraguptasuri
Publisher: Jain Atmanand Sabha

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Page 10
________________ मुनिगणनी आशीष वरसती हशे-छे ज तो पूज्य गुरुदेवना सत्संकल्पोने मूर्तस्वरूप आपवा अने तेमणे चालु करेली ग्रन्थमाळाने सविशेष उज्वल बनाववा यथाशक्य अल्प स्वल्प प्रयत्न हुं जरूर ज करीश / गुरुदेवनो प्रभाव-पूज्यपाद गुरुदेवमां दरेक बाबतने लगती कार्यदक्षता एटली बधी हती के कोई पण पासे आवनार तेमना प्रभावथी प्रभावित थया सिवाय रहेतो नहि / मारा जेवी साधारण व्यक्ति उपर पूज्य गुरुदेवनो प्रभाव पडे एमां कहेवापणुंज न होय; पण पंडितप्रवर श्रीयुत सुखलालजी, विद्वन्मान्य श्रीमान् जिनविजयजी आदि जेवी अनेकानेक समर्थ व्यक्कियो उपर पण तेओश्रीनो अपूर्व प्रभाव पडयो छे अने तेमनी विशिष्ट प्रवृत्तिनुं सजीव बीजारोपण अने प्रेरणा पूज्यपाद गुरुदेवना सहवास अने संसर्गथी प्राप्त थयां छे। जैन मंदिर अने ज्ञानभंडार वगेरेना कार्य माटे आवनार शिल्पीओ अने कारीगरो पण श्रीगुरुदेवनी कार्यदक्षता जोई तेमना आगळ बाळभावे वर्त्तता अने तेमना कामने लगती विशिष्ट कळा अने झानमां उमेरो करी जता। पूज्यपाद गुरुश्रीए पोताना विविध अनुभवोना पाठ भणावी पाटणनिवासी त्रिवेदी गोवर्धनदास लक्ष्मीशंकर जेवा अजोड लेखकने तैयार करेल छे / जे आजना जमानामां पण सोना चांदीनी शाही बनावी सुंदरमा सुंदर लिपिमां सोनेरी किम्मती पुस्तको लखवानी विशिष्ट कळा तेम ज लेखनकळाने अंगे तलस्पर्शी अनुभव पण धरावे छ / पाटणनिवासी भोजक भाई अमृतलाल मोहनलाल अने नागोरनिवासी लहिया मूळचंदजी व्यास वगेरेने सुंदरमां सुंदर प्रेसकोपीओ करवानें काम तेम ज लेखन-संशोधनने लगती विशिष्ट कळा पण पूज्य गुरुदेवे शीखवाड्यां छे, जेना प्रतापे तेओ आजे पंडितनी कोटिमा खपे छे। ____ एकंदर आजे दरेक ठेकाणे एक एवी कायमी छाप छे के पूज्यपाद प्रवर्तकजी महाराज अने पूज्य गुरुदेवनी छायामां काम करनार लेखक, पंडित के कारीगर हुशियार अने सुयोग्य ज होय। उपसंहार-अंतमा हुँ कोई पण प्रकारनी अतिशयोक्ति सिवाय एम कही शकुं छ के-पाटण, वडोदरा, लीम्बडीना ज्ञानभंडारनां पुस्तको अने ए ज्ञानभंडारो, श्रीआत्मानन्द जैन प्रन्थ रत्नमाळा अने एना विद्वान् वाचको, अने पाटण, वडोदरा, छाणी, भावनगर, डीबडी वगेरे गाम-शहेरो अने त्यांना श्रीसंघो पूज्यपाद परमगुरुदेव श्रीचतुरविजयजी महाराजना पवित्र अने सुमंगळ नामने कदीय भूली नहि शके / लि. पूज्य गुरुदेव श्रीचतुरविजयजी महाराजना पवित्र चरणोनो अनुचर अने तेओश्रीनी. साहित्यसेवानो सदानो सहचर मुनि पुण्यविजय

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