Book Title: Padsangraha Part 1 Author(s): Buddhisagar Publisher: Sukhlalji Ujamshi and Manilal Vadilal Sanand View full book textPage 9
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ८ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गान विद्या के रसिक है. उनको गद्यभाषा नहीं रुचनी इसलिये योग मार्ग क्रिया परायण श्री जैन श्वेताम्बर मुनिराज श्री बुद्धिसागरजी ने बहुत आन्दमे आकर मनोहर २ भजन छंदमें बनाकर तैयार किये हैं. जिनका स्वाद विशिष्ट साधारण सब लोकोंको मिले. इन सबका सार यह है की मनुष्योंकी अध्यात्ममे रुचि हो और काम क्रोधादि अन्तःशत्रुओंका नाश हो और अध्यात्म पुष्टि के लिये वैराग्यका तथा भक्तिरसकाभी सार पूर्ण रीति से दिखाया है. कारणकि बिना वैराग्यके वर्णन सांसारा ऽऽसक्ति दूर नहीं होती. और भक्ति विना चितके आवरण विक्षेप दूर नहीं होते. इसलिये वैराग्य तथा इष्टदेव में अनुराग अध्यात्म चिन्ताका परमोपाय है. सम्पूर्ण भजन आद्यंत से मेने प्राय सब सुने है. इनमे जैन शास्त्रकी रीति प्रमाण कहीं दोष नहीं है. कहीं द्रव्यार्थिक नयकी मुख्यता कहीं पर्य्यायार्थिक नयकी मुख्यता कहीं नैगमादि नय प्रमाण बहुत उत्तम रीति से वर्णन किया है. जो मनुष्य' जैन शास्त्र तथा अभिधा लक्षणा व्यंजनातात्पय्र्यावृत्तिके मर्मज्ञ हैं. उन लोकोंको मुनिराज श्री बुद्धिसागरजी रचित शास्त्र सिद्धान्तमे वो आस्वाद मिलेगा. जिसका फल एक एक पदकी भावनासे अनेक कर्मकी निर्जरा है. मित्रगण ! ज्यादे क्या लिखे. अमारा मन तो इन पद रत्नको सुनकर सुखान्धिमें मनहोता है. तथा और लोक वैदिक धर्मावलंबी सुनते हैं. तो चित्रके से लिखे होकर तथा कूदर कर सुनत है आहा ! ससही शास्त्रोमे जंगम तीर्थ साधुओ को कहा है. श्लोक. साधूनां दर्शनं पुण्यं तीर्थभूताहि साधवः तीर्थं फलति कालेन सद्यः साधुसमागमः (१) द. न्याय व्याकरण साहित्याऽऽचार्य पं. श्यामसुन्दराचार्य वैश्य, के. बी. एस. एम. K. B. S. M. For Private And Personal Use OnlyPage Navigation
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