Book Title: Padsangraha Part 1
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Sukhlalji Ujamshi and Manilal Vadilal Sanand

View full book text
Previous | Next

Page 8
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ७ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जो सुख एकान्तवासी मुनिको है, वो इन्द्र तथा चक्रवर्तीको नहि है. तथा जितना मनुष्य जादे संबंधी होगा, उतनाही दुःख जादे नीकलेगा. किसीको ज्वर आता है, किसीका मस्तक दुखता है, कोई मुमूर्षु हैं, सबके दुःखसे दुःखी होना पडता है, राज्याधिकारकी तो औरभी दुर्दशा है. उसकी इच्छा करनी तो सबसे खराब है. आज कल राज्याधिकार ये है कि, अमुक महाशयको ५००) जुलमाना करनेका अधिकार मिला. अमुक महाशयको छ मास कैद करनेका अधिकार मिला. परंतु सभ्यगण ! एसाभी अधिकार आपने सुना है ? कि अमुक शेठजीको फांसी माफ करनेका अधिकार मिला, अथवा अमुक शेठजीको कैद माफ करनेका अधिकार मिला. मित्रगण ! जिससे जीवदया पलेवोही तो अधिकार कहा जाता है ? और जो क्रूर परिणाम करनेवाले अधिकार हैं, वोतो राजाके विना किसीको शोभित नहीं होते, इत्यादि वात शोचकर प्राचीन ऋषि महात्मा लोकोंने वडे २ अध्यात्म शास्त्र रचकर सांसारिक जनोंपर वो कृपा करी है, कि जिसका बखान सरस्वती देवी भी नहीं करसकती जैसाआसुप्तेरामृतेः कालं, नयेदध्यात्मचिन्तया । ईषन्नावसरं दद्यात्, कामादीनाम्मनागपि ॥ For Private And Personal Use Only G जब तक निद्रावस्था नहो, तथा मृत्यु न आये तब तक ध्यात्म चिन्तासेही कालको वितावे. काम, क्रोध, लोभ, मोहकी वाडासाभी मोका न दे जिससे आकर सतावें. वो अध्यात्म चिन्ता कितनी कठिन है. इस वातको सबही बुद्धिमान् जानते हैं, उस अध्यात्म शास्त्रकी रचना कितनी प्रकारकी भाषामे कितनेही संज्ञा शब्दों में यद्यपि रचित है परंतु कितनेक तो विचारे मंदबुद्धियों के समज में नहीं आती. कितनेक बुद्धिमानभी हैं तोभी अन्य भाषा होनेसे पूरा तत्व नहीं मिलता. अथवा कितनेक छंद प्रबंध के तथा

Loading...

Page Navigation
1 ... 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 ... 210