Book Title: Padsangraha Part 1
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Sukhlalji Ujamshi and Manilal Vadilal Sanand

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Page 11
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पिंझमां परगट पेखता रे, वर्ते नेदान्नेद; लगी घट रटनाकी तारी,ज्योतकी होवे नजियारी. के ५ अलख अरुपी तुं प्रतुरे, बुद्धिसागर धार, कर्म शत्रुकुं जीतीएरे, करी केशरीयां सार; धरी घट ध्यान दशा सारी,लहो झट मुक्ति वधुप्यारी.केण्६ ॐ शंखेश्वर पार्श्वनाथाय नमः ॥ स्तवन ॥ . चरम जिनेश्वर अति अलवेसर,सखी हुं निशदिन ध्यानरे; परिपूर्ण स्यादाद स्वरुपी, सप्त नयोथी विचारुरे. च १ गुण अनंता अज अविनाशी, कार्य फले मिन्न ग्रहीएरे, तेम पर्याय अनन्ता प्रातम, समये समये वहीएरे. चण्श अस्तिता पर च्यादिकनी, समय समये अनन्तिरे; चेतन इव्ये नास्तितातल, सत्य पणे ते वहन्तिरे. चण्३ यदि नास्तिता वर्ते नहीं तो, परपरिणामि होयरे; आत्म अस्तिता परमां वर्ते, नास्ति रुपे अवलोयरे. च०४ अस्ति नास्तिता समये समये, आतम व्ये धरीएरे; कर्म वर्गणा निन्न विचारी,निजगुणताअनुसरीएरे. चण्य गुण पर्याय अनन्ता तेथी, निन्न न आतम क्यारेरे; निना निन्न स्वरुप वर्ते, निर्मल निश्चय धारेरे, चण्६ पूर्णकर परमातम प्रेमे, मन मंदिरमा स्मरीएरे; बुदिसागर अवसर पाकर, नवजल सागर तरीएरे.च०७ - - 0 0CORNEstarrer For Private And Personal Use Only

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