Book Title: Padsangraha Part 1
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Sukhlalji Ujamshi and Manilal Vadilal Sanand

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Page 13
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४ प्रति प्रदेशे कर्म वर्गणा, लागी अनन्ति दूर गइरी बदू कारक शुद्ध घट प्रगटयां, स्थिति सादि अनन्त थइरी. तेहीज वीरपणुं तुज मांदी, जान्ति भ्रमणा दूर करोरी बुद्धिसागर ध्यातां प्रगटे, सत्ता वीर समान खरीरी. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only वी. ६ वीर. ७ ॥ बोधपत्रम् ॥ ४. १ निर्मल कायिक चेतना, चिदानन्द गुणधाम, श्रातमसो परमातमा, अनन्त गुर्ण विश्राम. समय समय निज रूपमें, शक्ति अनन्त सदाय, विणशे नदि को काळमां, चिदूधन चेतन राय. २ ज्ञेय त्रिकालिक वस्तुनुं, जासने निजमां श्राय, उत्पत्ति स्थिति व्ययतणी, सत्ता निज वरताय. ३ शोधक शोधे अन्यकां, असत् न उपजे जाइ, उपादान षट कारको, घटघटमां वर्ता. चित्त स्थिर उपयोगता, लागे निजपद मांह्य, अवर कोय जासे नहि, निश्चय चरण ते त्यांय. ५ शेयरुप जासे सहु, ज्ञान गुणनुं काज, दर्पणमां श्रवनासता, उदासीनता राज. ६

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