Book Title: Padhmanuog ni Uplabdha Vachna
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan
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[29] सच्चइरुद्दसीसेहि मिच्छद्दिट्ठिवाणमंतरे हि तत्थ रयणीए सुविणयं जाए । गोसे पंचमे(भे?)य न्हाण पूयण नट्टगीय सुंदरत्थवेहिं अइसए वित्थरमाणे ईसरलिंग हुज्जा दिसि वित्थरियं सिंहमंडलाहिवेणं दुवारं ठवियं सिंहासणा उवरि नागराउ आरक्खमो ठविउ। त तउ(तउ) आयरिए सव्वसंघपरिवुडे विज्जाबलेण अतंरियं काऊण र(रे)वयतलंसि अणसणभत्ते कालगएतत्थ सिरिपूसमित्तारिए ।
दुन्नि खयरे तत्थ आगच्छए । जउ वद्धमाणेणं व(वु)त्तं । सीसा सच्चइरुद्धार हा)ई । तत्थ महत्तविसेसेणं सत्तजणवयरायपागयजणेहिं अभिनंदिज्ज माघविसेसे प्पहाव सोमलिंगुत्ति जाय तं(जायं तं) । अमलिब्भद्धिया(?) लिंगुत्ति सो देमि छच्चाससए मुवुतराहिए(?) वोडियदिट्ठीहिं सीयाविहारं गिण्हई । सालाहणं पडिवोहित्ता पालीत्तारिया या) उज्जिलसि ह रम्मि ठिए । नागज्जुणपहावगे दो रख(खु)ड्डए चंदेरि पवेसित्ता निज्जिए वाए । पच्छाए खुड्डविज्जाए (पच्छा खुड्डुए विज्जाए) अइक्कं ते । एवं चउद्दस वाससया साहिया दुसमाणु भावेण भासरासिग्गहपहाजालअत्थमियई(इ)यरतित्थप्पहा चकवाले जिणजम्मरासिं चइऊण गए । दत्तरायंसिं पुणो चंदण( चंद)-प्पहतित्थं सम्मद्दिट्ठिजक्खविसे सउ वुट्ठियदित(वड्डियदिति) सिरिसमणसंघवंदियं । दस वाससहस्सा पुणो वि रेवयसिहरम्मि पूइज्जई । वीस सहस्से अइक्कत तिहुयणसामिणी माण( णु )सुत्तरम्म पूइस्सइ ।।
तउ उद्देस उद्देसउ ।।
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जहा वा भगवउ वीरस्स जिढे नंदिवद्धणे भाया पित्तलामईउ वा(बा)वीसं पडिमाओ कारियाओ । गोयमा ! इय णइरेणं(णयरे णं) पडिमाउ पइट्ठियाउ । इत्थेव गवि(ठावि)याउ। पंचसए इगासीइ वियकंते गयणंगणे अंबादेवीए उप्पाडिऊणं चंदेरीए सिद्धमठ मज्झो(झे) ठ(ठि)या चंदप्पहपडिमा । तत्थ मिच्छद्दिट्ठीसुरेहि अखुहिए[हिं] पूईया । तत्थ सिरि-ह (हिरि-धी-कित्ति-बुद्धि-जालामालिणि-अंवाउ सन्निहियाउ पूर्यति । अणारिएहि विक्कमाउ तिनि सए पन्नहत्तरीए, तहा अह(ट्ट)सए दस(?)इक्कासीए, तेरसचुलसीए, चउद्दससए अउणत्तीसे वेयखुहिया जाव दससहस्से पूइस्सई । तउ परं उज्जिलसिहरम्मि पूइस्सइ ॥
|| एसो चउत्थ(उ)द्देसो चंदेरीत्यज्झयणं पंचमं ॥
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