Book Title: Nyayalay Shabdakosh Author(s): Hindi Sabha Sitapur Publisher: Hindi Sabha Sitapur View full book textPage 6
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भाषी थे । फिरभी हिंदी और नागरी के महत्व से वह अपरिचित न था । सन् १८०० – १८०४ के चार वर्ष प्रस्तुत विषय के इतिहास में बड़े महत्वपूर्ण समझे जांयेंगे। इसी बीच फ़ोट विलियम कालेज में वहां के हिंदी 'अध्यापक' मिस्टर गिलक्रिस्ट द्वारा हिंदी तथा नागरी के गले पर छुरी फेरी गई । निश्चय किया गया कि अनुवाद कियेगए विधानों की भाषा गंवारी है, और उसके स्थान पर फ़ारसी प्रधान उर्दू का व्यवहार होना चाहिये । देश की भाषा - विशेषकर न्यायालयों की भाषा नीति स्थिर होने में समय लगा । १८३५ में लार्ड मैकाले के परामर्श से लार्ड बेंटिंक ने उच्च शिक्षा का माध्यम अंगरेजी स्थिर किया, और १८३७ तक फ़ारसी को हटाकर, तथा हिंदी का अधिकार छीनकर, निश्चित रूपसे उर्दू भाषा तथा फ़ारसी लिपि को अपने वर्तमान् सिंहासन पर स्थापित किया । १८४० तक हिंदी तथा नागरी का सरकारी व्यवहार लुप्तप्राय होगया तथा आगरा गवर्नमेंट गज़ट तक अंगरेज़ी और उर्दू में प्रकाशित होने लगा । इस घोर अन्याय का प्रतिवाद न हुआ हो, यह बात नहीं है । सर सी० ई० ट्रेवेलियन तथा अन्य लोगों ने अपना विरोध प्रकट करते हुए न्यायालयों तथा सरकारी विज्ञक्षियों की भाषा की दुरूहता पर कड़ी टीकाटिप्पणी की तथा जनसाधारण को लिपि के त्याग की घोर निन्दा की । संभवत: इसी अंदोलन के फलस्वरूप १८२२ में एक सरकारी विज्ञप्ति द्वारा नम्बरदारों और पटवारियों को नागरी सीखने की आज्ञा For Private And Personal Use OnlyPage Navigation
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