Book Title: Niyamsara Part 01 Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy View full book textPage 6
________________ प्रकाशकीय आचार्य कुन्दकुन्द - रचित 'नियमसार (खण्ड-1 ) ' हिन्दी - अनुवाद सहित पाठकों के हाथों में समर्पित करते हुए हमें हर्ष का अनुभव हो रहा है। आचार्य कुन्दकुन्द का समय प्रथम शताब्दी ई. माना जाता है। वे दक्षिण के कोण्डकुन्द नगर के निवासी थे और उनका नाम कोण्डकुन्द था जो वर्तमान में कुन्दकुन्द के नाम से जाना जाता है। जैन साहित्य के इतिहास में आचार्य श्री का नाम आज भी मंगलमय माना जाता है। इनकी समयसार, प्रवचनसार, पंचास्तिकाय, नियमसार, रयणसार, अष्टपाहुड, दशभक्ति, बारस अणुवेक्खा कृतियाँ प्राप्त होती है । आचार्य कुन्दकुन्द - रचित उपर्युक्त कृतियों में से 'नियमसार' जैनधर्मदर्शन को प्रस्तुत करनेवाली शौरसेनी भाषा में रचित एक रचना है । इस ग्रन्थ में कुल 187 गाथाएँ हैं जिनमें से खण्ड-1 में 1 से 76 तक की गाथाएँ ली गई हैं । इसमें निश्चय और व्यवहार दृष्टि से सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र का निरूपण किया गया है। इसके साथ ही जीव द्रव्य, पुद्गल द्रव्य, धर्म द्रव्य, अधर्म द्रव्यं, आकाश द्रव्य तथा काल द्रव्य का भी वर्णन किया गया है। पुद्गल द्रव्य को विशेष रूप से समझाया गया है । 'नियमसार' का हिन्दी अनुवाद अत्यन्त सहज, सुबोध एवं नवीन शैली में किया गया है जो पाठकों के लिए अत्यन्त उपयोगी होगा। इसमें गाथाओं के शब्दों का अर्थ व अन्वय दिया गया है। इसके पश्चात संज्ञा - कोश, क्रिया (v)Page Navigation
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