Book Title: Nishith Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 13
________________ करने आदि का निषेध किया गया है। जो साधक इन प्रवृत्तियों का सेवन कर दोष लगाता है, उसे लघुचौमासी प्रायश्चित्त आता है। चौदहवाँ उद्देशक इस उद्देशक में पात्र के सम्बन्ध में विस्तृत चर्चा की गई है। संयमी साधक को पात्र खरीदने, उधार लेने का, परिवर्तन करने अथवा छीन कर लेने का, बिना आचार्य की आज्ञा के अन्य को अतिरिक्त पात्र देने, उपयोग में आने योग्य पात्र को न रखने और उपयोग न आने योग्य को रखने, पात्रों को आकर्षक बनाने का प्रयत्न करना इत्यादि प्रवृत्तियाँ करने का निषेध किया गया है। जो साधक इन प्रवृत्तियों को करता है, तो उसे लघुचौमासी प्रायश्चित्त आता है । पन्द्रहवाँ अध्ययन इस उद्देशक में सचित्त आम आदि फलों को खाने, गृहस्थ से किसी प्रकार की सेवा लेने, सामान्य रूप से किसी भी साधु की आसातना करने, अकल्पनीय स्थानों पर लघुनीत बड़ीनीत परठने, शिथिलाचारी साधुओं से आहार - वस्त्र, पात्र आदि लेने देने का निषेध किया है। इन प्रवृत्तियों का सेवन करने पर लघुचौमासी प्रायश्चित् बताया गया है। - [12] - Jain Education International सोलहवाँ उद्देशक - इस उद्देशक में सागारिक आदि की शय्या में प्रवेश करने, सचित्त ईख, गण्डेरी आदि खाने या चूसने, कलह करने वाले तीर्थियों से आहार- पानी ग्रहण करने, अनार्य क्षेत्र में विचरण करने, जुगुप्सित कुलों से आहार- पानी ग्रहण करने, अन्यतीर्थियों या गृहस्थों के साथ भोजन ग्रहण करने, आचार्य उपाध्याय आदि के आसन के ठोकर लगाने, प्रमाण से अधिक उपधि रखने का निषेध किया गया है। इन प्रवृत्तियों के सेवन करने पर प्रायश्चित्त का विधान है । सत्रहवाँ उद्देशक - संयमी साधकों का जीवन कुतूहल वृत्ति रहित होता है । अतएव उन्हें कुतूहल वश त्रस जीव को बांधने - खोलने, विविध प्रकार की मालाएं, आभूषण आदि बनाने एवं रखने का निषेध किया है। इसके अलावा गृहस्थ से बंद बर्तन खुलवा कर आहार ग्रहण करने, संचित्त पृथ्वी पर रखे आहार को ग्रहण करने, तत्काल बने हुए अचित्त जल को लेने, विविध प्रकार के वाद्य यंत्रों को बजाने, नृत्य करने आदि का निषेध किया गया है। जो इन दोष युक्त स्थानों का सेवन करते हैं उन्हें लघु चौमासी प्रायश्चित्त आता है। For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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