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क्र० विषय चउत्थो उद्देसओ - चतुर्थ उद्देशक
८६-११3 ७१. राजा आदि को वश में करने का प्रायश्चित्त ७२. राज-प्रशंसा आदि का प्रायश्चित्त ७३. राजा आदि को स्वसहयोगापेक्षी बनाने का प्रायश्चित्त ७४. अखण्डित व सचित्त (एक जीवी) अन्न-आहार का प्रायश्चित्त ७५. आचार्य द्वारा अदत्त-अनाज्ञप्त आहार-सेवन का प्रायश्चित्त ७६. अननुज्ञात रूप में विगय-सेवन का प्रायश्चित्त ७७. स्थापना कुल की जानकारी आदि प्राप्त किए बिना भिक्षार्थ प्रवेश का प्रायश्चित्त ७८. साध्वी-उपाश्रय में अविधिपूर्वक प्रवेश का प्रायश्चित्त ७९. साध्वियों के आने के मार्ग में उपकरण रखने का प्रायश्चित्त ८०. नवाभिनव कलह उत्पन्न करने का प्रायश्चित्त ८१. उपशमित पूर्वकालिक कलह को पुनः उत्पन्न करने का प्रायश्चित्त ८२. उद्धत - हास्य.- प्रायश्चित्त ८३. पार्श्वस्थ आदि को संघाटक आदान-प्रदान करने का प्रायश्चित्त ८४. सचित्त संस्पृष्ट हाथ आदि से आहार लेने का प्रायश्चित्त
. १०२ ८५. ग्रामरक्षक को वशंगत करने का प्रायश्चित्त
१०६ ८६. सीमारक्षक को वश में करने का प्रायश्चित्त
१०७ ८७. अरण्यरक्षक को अधीन करने का प्रायश्चित्त
१०७ ८८. परस्पर पाद-आमर्जन-प्रमार्जनादि का प्रायश्चित्त
१०९ ८९. परिष्ठापना समिति विषयक - दोष प्रायश्चित्त
११० ९०. पारिहारिक के साथ भिक्षार्थ जाने का प्रायश्चित्त
११२ ___पंचमो उद्देसओ - पंचम उद्देशक
११४-१3८ ९१. सचित्त वृक्ष मूल के सन्निकट स्थित होने आदि का प्रायश्चित्त
११४ ९२. अन्यतीर्थिक आदि से चद्दर सिलवाने का प्रायश्चित्त
११७ ९३. चद्दर के धागों को लंबा करने का प्रायश्चित्त ९४. नीम आदि के पत्ते खाने का प्रायश्चित्त ।
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