Book Title: Nishesh Siddhant Vichar Paryay
Author(s): Labhsagar Gani
Publisher: Jainanand Pustakalay
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णमोत्थु णं समणस्स भगवओ महावीरस्स ५० पू० आगोद्धारक-आचार्यप्रवर-श्रीआनन्दसागरसूरीश्वरेम्यो नम:
___ कृतिवर-गणि-चन्द्रकीर्तिसम्पिण्डित:
| निःशेषसिद्धान्त विचारपर्याय: । | प्रथमः खण्ड: विचारास्तु लिख्यन्ते-यथा
'अह सा भमरसन्नि कुञ्चफणगपसाहिए ।
सयमेव ढुंचइ केसे धिइमंता वस्सिया' ॥ इत्युत्तरा० ॥ २२ ॥ (आचारस्य) 'से आगंतारेसु वा आरामागारेसु वा गाहावइकुलेसु वा परियावसहेसु वा जे भयंतारो उउबद्धियं वा वासावासियं वा कप्पं उवाइणित्ता तत्थेव भुजो संवसंति । अयमाउसो ! कालाइकंतकिरिया वि भवइ' । अर्थस्तु-आगन्तारादिषु ये भगवन्तः 'ऋतुबद्ध 'मिति शीतोष्णकालयोर्मासकल्पमुपनीय - अतिवाह्य वर्षासु वा चतुरो मासानतिबाह्य तत्रैव पुन: कारणमन्तरेण आसते । अयमायुष्मन् ! कालातिक्रान्त-वसतिदोष: सम्भवति । इति मासकल्प-वर्षाकल्पानन्तरं न स्थातव्यम् ।
‘से आगंतारेसु वा ४ जे भयंतारो उडुबद्धियं श वासावासियं बा कप्पं उबाइणित्ता तं दुगुणादु (ति) गुणेण वा अपरिहरित्ता तत्थेव भुजो संवसति । अयमाउसो ! इयरा उवाणकिरिया' इत्याचारे (श्रुतस्कन्ध २, अध्ययन २) ___अह पुणेवं जाणेजा चत्तारि मासा वासावासाणं वीइकंता हेमंताण य पंच दस राइकप्पे परियुसिए, अंतरा से मग्गे बहुपाणा जाव संताणगा नो जत्थ बहवे समण जाव उवागमिस्संति, सेवं नचा नो गामाणुगाम दुइजिजा । अर्थस्तु-अथैवं जानीयात् यथा चत्वारोऽपि मासा प्रावृट्कालसम्बन्धिनोऽतिक्रान्ताः, कार्तिकचातुर्मासकमतिकान्तमित्यर्थः । तत्रोत्सर्गतो यदि न वृष्टिः, ततः प्रतिपद्येवान्यत्र
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