Book Title: Nimadi Bhasha aur Uska Kshetra Vikas Author(s): Ramnarayan Upadhyay Publisher: Z_Jinvijay_Muni_Abhinandan_Granth_012033.pdf View full book textPage 7
________________ १८० श्री रामनारायण उपाध्याय से आत्मसात् हो चुकी है। लेकिन इसके नाम से इसके गुजरात से आने का पता चलता है । निमाड़ में 'नागर' जाति के भी गुजरात से सांस्कृतिक सम्बन्ध रहे हैं । निमाड़ में रहने वाली 'लाड़' जाति गुजरात में रहने वाले 'लाड़' लोगों से सम्बन्धित रही है । ये भी गुजरात से आये होंगे ऐसा प्रतीत होता है । राजपुर बड़वानी में 'मेघवाल' नामक एक जाति बसी है । यह यहां सौराष्ट्र से आकर बसी है । इनके रहन-सहन, रीति-रिवाज आदि सब पर सौराष्ट्रीय संस्कृति श्राज भी विद्यमान है । गनगौर गीत में रनु के यहां सौराष्ट्र से प्राने का जिक्र है, देखिये गीत को निमाड़ के एक पंक्तियां हैं आई हो । अर्थ है - हे रनु तुम्हारे किन किन स्वरूपों का वर्णन किया जाये, तुम सौराष्ट्र देश से जो थारो काई काई रूप बखाणू रनुबाई, सोरठ देश से आई ओ 11 श्री डा० वासुदेवशरण अग्रवाल के मत से रादनी देवी की पूजा गुजरात सौराष्ट्र में भी प्रचलित थी । वहां उसकी चौदहवीं सदी तक की मूर्तियां पाई गई हैं । एक मूर्ति के लेख में उसे श्री सांबादित्य की देवी श्री रनादेवी कहा गया है । सौराष्ट्र के पोरबन्दर के समीप बगवादर और किन्दरखेड़ा में रन्नादेवी या रांदलदेवी के मंदिर हैं । वस्तुतः यह रादनी देवी गुप्तकाल से पहिले ईरानी शकों के साथ गुजरात-सौराष्ट्र में लाई गई थी जिसा कि निमाड़ी लोक गीत में कहा गया है गुजरात सौराष्ट्र में राणादे या रांदलमां की पूजा सन्तान प्राप्ति के लिये की जाती है । अर्वाचीन गुजराती साहित्य में भी रणादेव के भजन पाये जाते हैं । ' गुजराती की तरह ही निमाड़ी में भी निमाड़ी भाषियों की रेल में बातचीत सुनकर लगता है । निमाड़ी देखिये निमाड़ी और गुजराती भाषा के निम्न दो लोक गीतों में कितना साम्य रहा हैः गुजराती " किया तो कुछ इस कदर प्रयोग में लाई जाती है कि दो अपरिचितों को उनके गुजराती भाषा होने का शक होने Jain Education International जी रे चांदों तो निर्मल नीर, तारो क्यारे ऊंगशे । ऊंगशे रे पाछली सी रात, मोतीड़ा घरणा भूल ॥ २ चन्द्रमा निरमई रात, तारो कवं जंगसे, तारो ऊंगसे पाछली रात, पड़ोसेण जागते | 3 (१) जनपद - बनारस (पृष्ठ ६१-६२ ता० १-१-५३ ) (२) व ( ३ ) निमाड़ी लोकगीत ( रामनारायण उपाध्याय) पृष्ठ ५६ For Private & Personal Use Only -- www.jainelibrary.orgPage Navigation
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