Book Title: Nimadi Bhasha aur Uska Kshetra Vikas
Author(s): Ramnarayan Upadhyay
Publisher: Z_Jinvijay_Muni_Abhinandan_Granth_012033.pdf

View full book text
Previous | Next

Page 5
________________ १७८ श्री रामनारायण उपाध्याय विभाजित प्रान्तों को समग्र राष्ट्रीयता के एक सूत्र में पिरोये रखने का श्रेय भी उसे ही होता है । उसे लेकर ही राष्ट्रीय इतिहास का निर्माण होता है और इस तरह किसी विश्व मान्य भाषा के सहारे प्रान्त और राष्ट्रों में विभाजित सम्पूर्ण मानवीय जगत, वसुदेव कुटुम्ब की तरह समीप प्राता जाता है । लेकिन लोकभाषायें इन सबकी जड़ में अन्तर्निहित वह शक्ति है जिसे लेकर ही राष्ट्र भाषा समृद्ध होती है। वे राष्ट्रीय इतिहास के नहीं, वरन मानवीय जीवन की निर्माता होती हैं। उनके सहारे ही हम कोल-संस्कृति और लोकजीवन का दर्शन कर सकते हैं । इस तरह भिन्न भिन्न व्यक्तियों, जनपदों और प्रान्तों को लेकर राष्ट्र भाषा बनती है, उसी तरह विविधता में सुन्दरता और एकता की तरह लोक भाषाओं से राष्ट्र-भाषा समृद्ध होती है और उसका स्वरूप निखरता आया है । निमाड़ी निमाड़ जिले की ग्राम जनता द्वारा बोली जाने वाली ऐसी ही एक लोक भाषा है । समूचे निमाड़ पर जिसका एक छत्र प्राधिपत्य है । यह मुख्यतः उत्तर में मालवे की सीमा को छूते हुये नर्मदा के आस-पास, ओंकारेश्वर, मण्डलेश्वर, महेश्वर, मध्य में खरगोन, पश्चिम में जोबट, अलीराजपुर, धार और बड़वानी, तथा पूर्व में होशंगाबाद के नजदीक हरदा और हरसूद को लेकर दक्षिण में सुदूर खण्डवा श्रौर बुरहानपुर के आस पास खान देश की सीमा तक बोली जाती है । आदर्श निमाड़ी के केन्द्र खण्डवा और खरगोन रहे हैं। इसके बोलने वालों की संख्या लगभग ५ लाख है । लिपि और उच्चारण : निमाड़ी भाषा के कुछ ध्यान नहीं दिया जावे तो निमाड़ी होने की सम्भावना रहती है । जैसे मख, तुख, जेम, श्रोम । देखने में ये सीधे-साधे दो अक्षरी शब्द हैं लेकिन इनके निमाड़ी स्वरूप में प्रत्येक के साथ अन्त में 'अ' का लोप है, और इनके उच्चारण में अन्तिम अक्षर पर जोर दिया जाता है । यथा- मख्न, तुखत्र्, जेमत्र् श्रोमय् । लिखावट और उच्चारण में समन्वय साधने की दृष्टि से मैंने जिसके लिये संस्कृत के शब्द का प्रयोग किया है । इससे सारी कठिनाई हल हो जाती है और साथ ही शब्द का सही स्वरूप भी स्पष्ट हो जाता है । उदाहरण के लिये निमाड़ी लोक गीत की एक पंक्ति को लीजिये: ॥ जेम सर श्रोम सारजो ॥ इसमें इसका वास्तविक स्वरूप स्पष्ट नहीं हो पाया है क्योंकि जैसी लिखावट है वैसा ही उच्चारण होगा - 'जेम सर श्रोम सारजो' । लेकिन इसका सही निमाड़ी स्वरूप है - 'जेम, सरन, ओमन, सारजो ।' अतएव विशुद्ध निमाड़ी लिपि की दृष्टि से यह यों लिखा जावेगा - (१) जेमs ( २ ) सर (३) श्रोम (४) सारजो । Jain Education International शब्दों की लिखावट और उच्चारण में फर्क रहा है । यदि इसकी ओर भाषा को ठीक ढंग से पढ़ा नहीं जा सकता और उसका अर्थ भी गलत निमाड़ के कुछ शब्द हैं 3 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 3 4 5 6 7 8 9 10