Book Title: Nimadi Bhasha aur Uska Kshetra Vikas
Author(s): Ramnarayan Upadhyay
Publisher: Z_Jinvijay_Muni_Abhinandan_Granth_012033.pdf

View full book text
Previous | Next

Page 8
________________ निमाड़ी भाषा और उसका क्षेत्र विस्तार एक और गीत है: गुजराती निमाड़ी पान सरीखी पातलई रे, चोल ई मं छिप जाय रे । इलायची, सरीखी महेकणई रे, बटुवा मं छिप जाय रे ॥ ५ साथ ही गुजराती और निमाड़ के इन शब्दों का साम्य भी देखिये । निमाड़ी स्यालो उढालो प्रांगणो मुक्को अंगलाई फलई जाड़ो घाघरो शहेर महेल Jain Education International पान सरखी रे हूं तो पातलई रे, मने बीड़लो वालई लई जावरे । एलायची सरखी रे हूँ तो मधु मधु रे, मने दाढ़ मां घाली ने लई जाव रे ॥ * सेरी गुजराती शियालो उनालो ग मुक्की आांगली फली जाडु घाघरो शहेर महेल शेरी (४) सम्मेलन पत्रिका, लोक संस्कृति अंक, संवत २०१० पृष्ठ १८६ (५) जब निमाड़ गाता है ( रामनारायण उपाध्याय) पृष्ठ ६२ । निमाड़ी और मराठी निमाड़ के दक्षिण में मराठी भाषी प्रान्त लगा होने से निमाड़ी में मराठी के भी कुछ शब्द प्रा मिले हैं, लेकिन इनकी संख्या इतनी कम रही है कि निमाड़ी भाषा सहज ही इन्हें आत्मसात् कर चुकी है । निमाड़ी में 'ल' की जगह 'ल' का प्रयोग भी मराठी से ही श्राया प्रतीत होता है । निमाड़ी श्रौर मालवी । निमाड़ी और मालवी में जितना साम्य है उतना और किसी भाषा में नहीं है । जिस तरह इन दोनों भू-भागों की सीमा एक दूसरे से गले लिपटी हैं, उसी तरह यहां की भाषायें भी एक दूसरी से कुछ इस कंदर मिलती हैं मानों दो बहिनें परस्पर गले मिल रही हों । हिन्दी अर्थ जाड़ा गरमी प्रांगन घूस अंगुली फली मोटा लहंगा शहर महल गली For Private & Personal Use Only १८१ www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 6 7 8 9 10