Book Title: Nimadi Bhasha aur Uska Kshetra Vikas Author(s): Ramnarayan Upadhyay Publisher: Z_Jinvijay_Muni_Abhinandan_Granth_012033.pdf View full book textPage 9
________________ श्री रामनारायण उपाध्याय निमाड़ के उत्तर में मालवे की सीमा लगी होने से वहां पर निमाड़ी मालवी से प्रभावित होकर बोली जाती है । इसमें निमाड़ के 'तुमख' को 'तमख', काई - 'कंई', कहूं— 'कू', वहां – 'वां', जव – को 'जद', श्रौर नहीं को 'नी' कर देने से निमाड़ी सहज ही मालवी से प्रभावित हो उठती है । देखिये -निमाड़ी का एक लोकगीत मालवी प्रभावित क्षेत्र में पहुंचकर किस कदर बदल उठा है । निमाड़ी गीत की पंक्तियां है :-- १-२ सरग भवन्ति हो गिरधरनी, एक संदेसों लई जाश्रो । सरग का अमुक दाजी खश्रू यो कहेजो, तुम घर अमुक को व्याय || जेमय् सर श्रोमय् सारजो, हमरो तो श्रवणों नी होय । जड़ी दिया वज्र किवाड़, अग्गल जड़ी लुहा की जी ॥ १ इसका मालवी प्रभावित स्वरूप है: सरग भवन्ति को गिरघरनी, एक संदेशों लई जावो । सरग का श्रमुक दाजी से यूं कीजो, तम घर अमुक को याय ॥ जेमय् सर ग्रोमम् सारजो, हमरो तो श्रावणों नी होय । जड़ी दया वजर कवाड़, अग्गल जड़ी लुप्रा की जी ॥ इसमें रेखाकित शब्द निमाड़ी से मालवी प्रभावित हो उठे हैं । प्रचलित सिंगाजी का एक गीत देखिये:— ( २ ) अजमत भारी काई कहूं सिंगाजी तुम्हारी, भाबुना देश बहादसिंग राजा । अरे वहां गई बाजू ख फेरी, जहाजवान न तुमख इसी का मालवी से प्रभावित स्वरूप है: सुमर्यो, अरे वहां डूबत जहाज उबारी ( ३ ) अजमत भारी कई कू सिंगाजी, तमारी अरे वां गई बाजू ने फेरी, भाजवान ने तमख Jain Education International (१) निमाड़ी लोकगीत ( रामनारायण उपाध्याय ) (२) लेखक द्वारा संग्रहित गीतों की पाडु लिपि ( ३ ) श्री श्याम परमार ( नई दुनिया ) २१-६-५३ इसी तरह निमाड़ी भाषा में झाबुना देस वाँ सुमर्या, अरे वां इसमें रेखांकित शब्द निमाड़ी से मालवी प्रभावित हो उठे हैं। इसी सीमावर्ती भाषाओं के प्रभाव के आधार पर कुछ लोग निमाड़ी को मालवी की उपभाषा गिनते चलते हैं लेकिन वास्तव में दोनों भाषाओं का अपना अपना स्वतन्त्र स्वरूप श्रोर उच्चारण रहा है। एक श्रोर मालवी जहां अपने वहां की गहर गंभीर जमीन और सौन्दर्यप्रिय लोगों की अत्यन्त ही मृदु, कोमल और कमनीय भाषा है, वहीं दूसरी ओर निमाड़ी अपने यहां की ऊबड़-खाबड़ जमीन और कठोर परिश्रमी लोगों की अत्यन्त ही भाषा है । उच्चारण की दृष्टि से मालवी जहां हर बात में लचीलापन लिये सीधी बात करने की अभ्यस्त रही है । प्रखर, तेजस्वी और सुस्पष्ट होती है, वहां निमाड़ी साफ For Private & Personal Use Only बादरसिंह राजा । डूबी भाज उबारी | 3 www.jainelibrary.orgPage Navigation
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