Book Title: Nimadi Bhasha aur Uska Kshetra Vikas Author(s): Ramnarayan Upadhyay Publisher: Z_Jinvijay_Muni_Abhinandan_Granth_012033.pdf View full book textPage 1
________________ निमाड़ी भाषा और उसका क्षेत्र विस्तार निमाड़ और उसकी सीमा : हिन्दुस्तान के नक्शे में विन्ध्य और सतपुड़ा के बीच में जो भू-भाग बसा है, वह निमाड़ के नाम से प्रसिद्ध है। वैसे शासन व्यवस्था की दृष्टि से यह दो भागों में विभाजित रहा है। एक पूर्वी निमाड़ तथा दूसरा-पश्चिमी निमाड़ । लेकिन रहन-सहन, रीति-रिवाज, आब-हवा, भाव-भाषा और संस्कृति की दृष्टि से दोनों एक और अभिन्न हैं। भौगोलिक सीमा की दृष्टि से उत्तर में विन्ध्याचल, दक्षिण में सतपुड़ा, पूर्व में छोटी तवा नदी और पश्चिम में हरिणफाल के पास सुदूर धारा और बड़वानी को लेकर इसकी सीमायें बनती हैं । यह एक संयोग की बात है कि उत्तर दक्षिण में यदि दो पर्वत सजग प्रहरी की तरह इसके दो किनारों पर खड़े हैं तो पूर्व और पश्चिम में दो नदियां जिसकी सीमा-रक्षा करती आयी हैं। अन्य भाषा-भाषी प्रान्तों की दृष्टि से उत्तर में मालवा, दक्षिण में खानदेश, पूर्व में होशंगाबाद और पश्चिम में सुदूर गुजरात को इसकी सीमायें छूती हैं। कुछ लोग निमाड़ और मालवा को एक ही सीमा में गिनते चलते हैं। लेकिन वास्तव में मालवा यदि नर्मदा के उत्तर में फैला है, तो निमाड़ नर्मदा के दक्षिण में पूर्व और पश्चिम की ओर फैलते हये सुदुर खानदेश तक चला गया है। डाक्टर यदुनाथ सरकार के मत और मालवे की एक लोकोक्ति से भी जिसकी पुष्टि होती है । डाक्टर यदुनाथ सरकार ने (इडिया एण्ड ओरंगजेब) में मालवा की सीमा के सम्बन्ध में स्पष्ट लिखा है कि-स्थूल रूप से दक्षिण में नर्मदा नदी, पूर्व में बेतवा, एवं उत्तर पश्चिम में चम्बल नदी प्रान्त की सीमा निर्धारित करती थी। एक लोकोक्ति के अनुसार भी दक्षिण मालवे की सीमा नर्मदा तक ही मानी जाती है। उसके शब्द हैं-- 'इत चम्बल उत बेतवा, मालव सीम सजान, दक्षिण दिसि है नर्मदा, यह पूरो पहिचान ।' समूचे निमाड़ की जनसंख्या करीब १२ लाख और क्षेत्रफल १० हजार वर्ग मील है। नाम: जहां तक इसके नाम का सम्बन्ध है, ऐसा अनुमान है कि यह उत्तर भारत व दक्षिण भारत का सन्धि-स्थल होने से प्रार्य और अनार्यों की मिश्रित भूमि रहा होगा और इसी नाते इसका नाम 'निमार्य (नीम आर्य) पड़ा होगा। 'नीम' का अर्थ भी निमाड़ी में प्राधा होता है। इसी निमार्य का बदलते बदलते निमार और निमाड़ हो जाना स्वाभाविक है। इसका दूसरा कारण यह भी हो सकता है कि निमाड़ मालवे से नीचे की ओर बसा है। मालवे से निमाड़ की ओर पाने में निरन्तर नीचे की ओर उतरना होता है। इस तरह 'निम्नगामी' होने से जिसका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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