Book Title: Naychakradi Sangraha Author(s): Devsen Acharya, Bansidhar Pandit Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti View full book textPage 9
________________ किया है । पं० शिवजी लालजीकृत दर्शनसार-वचनिकामें देवसेनके संस्कृत नयचक्रका जो उल्लेख है, वह भी जान पडता है, इसी आलापपद्धतिको लक्ष्य करके किया गया है। यद्यपि आलाप. पद्धतिमें नयचक्रका ही गद्यरूप सारांश है और वह नयचक्रके ऊपर ही की गई है, इसलिए कुछ लोगों द्वारा दिया गया उसका यह ' नयचक्र' नाम एक सीमातक क्षम्य भी हो सकता है; परन्तु वास्तवमें इसका नाम ' अलापपद्धति ' ही है-नयचक्र नहीं। आलापपद्धतिके प्रारंभमें ही लिखा है- “ आलाफपद्धतिर्वचनरचनानुक्रमेण नयचक्रस्योपरि उच्यते ।" इससे मालूम होता है कि आलापपद्धति नयचक्रपर ही प्रश्नोत्तररूप संस्कृतमें लिखी गई है । आलाप अर्थात् बोलचालकी पद्धतिपर अथवा वचनरच. नाके ढंगपर यह ' सुखबोधार्थ ' या सरलतासे समझमें आनेके लिए बनाई गई है। इसकी प्रत्येक प्रतिमें इसे 'देवसेनकृता' लिखा भी मिलता है, इससे यह निश्चय हो जाता है कि यह नयचक्रके की देवसेनकी ही रचा हुई है-अन्य किसीकी नहीं । २ लघुनयचक्र । श्रीदेवसेनसूरिका वास्तविक नयचक्र यही है । इसके साथ जो ' लघु ' विशेषण लगाया गया है वह इसके आगेके ग्रंथको बडा देखकर लगा दिया गया है; परंतु वास्तवमें उसका नाम द्रव्यस्वभाव प्रकाश है और उसके कर्ता माइल्लधवल हैं जैसा कि आगे सिद्ध किया गया है । इसलिये इसका नयचक्रके ही नामसे उल्लेख किया जाना चाहिए। .Page Navigation
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