Book Title: Naychakradi Sangraha
Author(s): Devsen Acharya, Bansidhar Pandit
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti

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Page 7
________________ अध्याय हैं । यह ग्रंथ बहुत बड़ा है । इसपर आचार्य यशोभद्रजी की बनाई हुई एक टीका है जिसकी श्लोकसंख्या १८००० है। यह अनेक श्वेताम्बर पुस्तकालयोंमें उपलब्ध है। संभव है कि विद्यानन्दस्वामीने इसी नयचक्र को लक्ष करके पूर्वोक्त सूचना की हो। जिसतरह हरिवंशपुराण और आदिपुराणके कर्त्ता दिगंबर जैनाचार्योंने सिद्धसेनसरिकी प्रशंसा की है जो कि श्वेताम्बराचार्य समझे जाते हैं उसी तरह विद्यानन्दस्वामीने मी श्वेतांबराचार्य मल्ल वादिके ग्रंथको पढ़ने की सिफारिश की हो, तो कोई आश्चर्यकी बात नहीं है । जिस तरह सिद्धसेनसूरि तार्किक थे उसी तरह मल्लवादि भी थे और दिगंबर और श्वेतांबर संप्रदायके ताकिक सिद्धांतोंमें कोई महत्वका मतभेद भी नहीं है । तब नयसंबंधी एक श्वेतांबर तर्क ग्रन्थका उल्लेख एक दिग़म्बराचार्य द्वारा किया जाना हमें तो असंभव नहीं मालूम होता । अनेक श्वेतांबर ग्रन्थकर्ताओंने भी इसी तरह दिगंबर ग्रन्थकारोंकी प्रशंसा की है और उनके अन्थोंके हवाले दिये हैं। यह भी संभव है कि देवसेनके अतिरिक्त अन्य किसी दिगंबराचार्यका भी कोई नयचक्र हो और विद्यानन्दस्वामीने उसका उल्लेख किया हो । माइलधवलके बृहत् नयचक्रके अंतकी एक गाथा जो केवल बम्बईवाली प्रतिमें है, मोरेनाकी प्रतिमें नहीं है -यदि ठीक हो तो उससे इस बातकी पुष्टि होती है । वह गाथा

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