Book Title: Naychakradi Sangraha
Author(s): Devsen Acharya, Bansidhar Pandit
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
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भग पूरे नयचक्रको भी इसमें शामिल कर लिया गया है; यहाँतक कि मंगलाचरण की और अंतकी नयचक्रकी प्रशंसासूचक गाथायें भी नहीं छोडी हैं ! जान पडता है कि नयचक्रकी उक्त प्रशंसासूचक गाथाओंके कारण ही लोगोंको भ्रम हो गया है और वे इसे ' बृहत् नयचक्र ' कहने लगे हैं ।
इसके प्रारंभकी उत्थानिकामें लिखा है: - " श्रीकुंदकुंदाचार्यकृतशास्त्राणां सारार्थं परिगृह्य स्वपरोपकाराय द्रव्यस्वभावप्रकाशकं नयचक्रं मोक्षमार्गं कुर्वन् गाथाकर्ता ( १ ) .... इष्टदेवताविशेषं नमस्कुर्व्वन्नाह - | यहाँ द्रव्यस्वभावप्रकाशक - यचक्रका विशेषण है । संग्रहकर्ताका इससे यह अभिप्राय भी हो सकता है कि यह नयचक्रयुक्त द्रव्यस्वभावप्रकाशक ग्रंथ है ।
अब हमें यह देखना चाहिए कि इस ' द्रव्यस्वभावप्रकाश ' के कर्ता कौन हैं |
दव्वसहावपयासं दोहयबंधेण आसि जं दिहं । तं गाहावंघेण य रइयं माइल्ल धवलेण || दुसमीर पोयम (नि) वाय पा (या) ता (णं) सिरिदेवसेजोई |
१ बम्बईवाली प्राचीन प्रतिमें यहां गाथाकर्ता ही पाठ है, जब कि मोरेनाकीमें ग्रंथकर्ता है । वास्तवमें गाथा कर्ता ही होना चाहिए यही पाठ छपना भी चाहिए था ।