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________________ ८ भग पूरे नयचक्रको भी इसमें शामिल कर लिया गया है; यहाँतक कि मंगलाचरण की और अंतकी नयचक्रकी प्रशंसासूचक गाथायें भी नहीं छोडी हैं ! जान पडता है कि नयचक्रकी उक्त प्रशंसासूचक गाथाओंके कारण ही लोगोंको भ्रम हो गया है और वे इसे ' बृहत् नयचक्र ' कहने लगे हैं । इसके प्रारंभकी उत्थानिकामें लिखा है: - " श्रीकुंदकुंदाचार्यकृतशास्त्राणां सारार्थं परिगृह्य स्वपरोपकाराय द्रव्यस्वभावप्रकाशकं नयचक्रं मोक्षमार्गं कुर्वन् गाथाकर्ता ( १ ) .... इष्टदेवताविशेषं नमस्कुर्व्वन्नाह - | यहाँ द्रव्यस्वभावप्रकाशक - यचक्रका विशेषण है । संग्रहकर्ताका इससे यह अभिप्राय भी हो सकता है कि यह नयचक्रयुक्त द्रव्यस्वभावप्रकाशक ग्रंथ है । अब हमें यह देखना चाहिए कि इस ' द्रव्यस्वभावप्रकाश ' के कर्ता कौन हैं | दव्वसहावपयासं दोहयबंधेण आसि जं दिहं । तं गाहावंघेण य रइयं माइल्ल धवलेण || दुसमीर पोयम (नि) वाय पा (या) ता (णं) सिरिदेवसेजोई | १ बम्बईवाली प्राचीन प्रतिमें यहां गाथाकर्ता ही पाठ है, जब कि मोरेनाकीमें ग्रंथकर्ता है । वास्तवमें गाथा कर्ता ही होना चाहिए यही पाठ छपना भी चाहिए था ।
SR No.090298
Book TitleNaychakradi Sangraha
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorBansidhar Pandit
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1920
Total Pages194
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size8 MB
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