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सेसि पायपसाए उवलद्धं समणतच्चेण ॥
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पहली गाथाका अर्थ यह है कि ' दव्वसहावपयास मका एक ग्रन्थ था जो दोहा छंदों में बनाया हुआ था । उसीको माइल धवलने गाथाओं में रचा ।
दूसरी गाथा बहुत कुछ अस्पष्ट है; फिर भी उसका अभिप्रायं लगभग यह है कि श्रीदेवसेन योगीके चरणोंके प्रसादसे यह ग्रंथ बनाया गया ।
यह गाथा बम्बईकी प्रतिमें नहीं है, मोरेना की प्रतिमें हैं । बम्बईकी प्रतिमें इसके बदले ' दुसमीरणेण पोयं पेरियर्सतं ' आदि गाथा है जो ऊपर एक जगह उद्धृत की जा चुकी है और जि समें यह बतलाया गया है कि देवसेनमुनिने पुराने नष्ट हुए नयचक्रको फिरसे बनाया ।
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मोरेनावाली प्रतिकी गाथा यदि ठीक है तो उससे केवल यही मालूम होता है कि माइल धवलका देवसेनसूरिसे कुछ निकटका गुरुसंबंध होगा । बम्बईवाली प्रतिकी गाथा माइले धवलसे कोई संबंध नहीं रखती है - वह नयचक्र और देवसेनसूरिकी प्रशंसावाचक अन्य तीन चार गाथाओंके समान एक जुदी हीं प्रशस्ति गाथा है ।
नीचे लिखी गाथामें कहा है कि दोहा छंदमें रचे हुए द्रव्य स्वभाव प्रकाशको सुनकर सुहंकर या शुभंकर नामके कोई सज्ज - न जो संभवत माइल धवलके मित्र होंगे हंसकर बोले कि दोहामें यह अच्छा नहीं लगता; इसे गाथाबद्ध कर दो :