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________________ सुणिऊण दोहरत्थं सिग्घ हसिऊण सुहंकरो भणइ । एत्थ ण सोहइ अत्थो गाहाबंधेण तं भणह ।। इससे भी यही मालूम होता है कि 'दव्वसहावपयास' पहले दोहाबद्ध था और उसे माइल्ल धवलने गाथाबद्ध किया है। माइल्ल धवल गाथा कर्ता ही हैं, इसका खुलासा इस ग्रन्थकी उस्थानिकासे भी हो जाता है जहां लिखा है कि गाथाकर्ता (ग्रन्थकर्ता नहीं ) इष्ट देवताको नमस्कार करते हुए कहते हैं । नीचे लिखी गाथाओंसे भी यह प्रकट होता है कि इस ग्रन्थ के कर्ता देवसेनसूरि नहीं किंतु माइल धवल हैं: दारियदुण्णयदणुयं परअप्पपरिक्खतिक्खखरधारं । सव्वण्हुविण्हुचिण्हं सुदंसणं णमह णयचक्कं ॥ सुयकेवलीहिं कहियं सुअसमुद्दअमुदमयमाणं । बहुभंगभंगुराविय विराजियं णमह णयचक्कं ।। सियसद्दसुणयदुग्णयदणुदेह विदारणेक्कवरवीरं । तं देवसेणदेवं णयचक्कयरं गुरुं णमह ॥ इनमें से पहली दो गाथाओंमें नयचक्रकी प्रशंसा करके कहा है कि ऐसे विशेषणों युक्त न्यचक्रको नमस्कार करो और ती. सरी गाथामें कहा है कि दुर्नयरूपी राक्षसको विदारण करने .वाले श्रेष्ठ वीर गुरु देवसेनको जो नयचक्रके कर्ता हैं-नमस्कार करो। यदि इस ग्रंथके कर्ता स्वयं देवसेन होते तो वे अपने
SR No.090298
Book TitleNaychakradi Sangraha
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorBansidhar Pandit
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1920
Total Pages194
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size8 MB
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