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लिये गुरु आदि शब्दोंका प्रयोग न करते और न यही कहते कि तुम उन देवसेनको और उनके नयचक्रको नमस्कार 'करो । ___ इन सब बातोंसे सिद्ध है कि छोटे नयचक्रके कर्ता ही देवसेन हैं और माइलधवल उन्हीको लक्ष्य करके उक्त प्रशंसा करते हैं। माइल्लघवलने देवसेनसूरिके पूरे नयचक्रको अपने इस ग्रन्थमें अन्तर्गर्भित करलिया है । ऐसी दशामें उनका इतना गुणगान करना आवश्यक भी हो गया है।
माइल्लधवलने इसके सिवाय और कोई ग्रंथ भी बनाये । हैं या नहीं और ये कब कहां हुए हैं, इसका हम कोई पता
नहीं लगा सके। आश्चर्य नहीं जो वे देवसेनके ही शिष्योंमें हों, जैसाकि मोरेनाकी प्रतिकी अंतिम गाथासे और देवसेनके श्रेष्ट गुरु शब्दका प्रयोग देखनेसे जान पडता है।
देवसेनसरि । नयचक्रके संबंधमें इतनी आलोचना करके अब हम संक्षेपमें इसके कर्ता देवसेनसूरिका परिचय देना चाहते हैं । इनका बनाया हुआ एक भावसंग्रह नामका ग्रन्थ है। उसमें वे अपने विषयमें इस प्रकार कहते हैं:.. सिरिविमलसेण (१) गणहरसिस्सो णामेण देवसेणुत्ति । १-श्रीविमलसेनगणधरशिष्यः नामेन देवसेन इति ।
अबुधजनवोधनार्थे तेनेदं विरचितं सूत्रं ॥