Book Title: Naychakradi Sangraha
Author(s): Devsen Acharya, Bansidhar Pandit
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 13
________________ ९ सेसि पायपसाए उवलद्धं समणतच्चेण ॥ ' नौ पहली गाथाका अर्थ यह है कि ' दव्वसहावपयास मका एक ग्रन्थ था जो दोहा छंदों में बनाया हुआ था । उसीको माइल धवलने गाथाओं में रचा । दूसरी गाथा बहुत कुछ अस्पष्ट है; फिर भी उसका अभिप्रायं लगभग यह है कि श्रीदेवसेन योगीके चरणोंके प्रसादसे यह ग्रंथ बनाया गया । यह गाथा बम्बईकी प्रतिमें नहीं है, मोरेना की प्रतिमें हैं । बम्बईकी प्रतिमें इसके बदले ' दुसमीरणेण पोयं पेरियर्सतं ' आदि गाथा है जो ऊपर एक जगह उद्धृत की जा चुकी है और जि समें यह बतलाया गया है कि देवसेनमुनिने पुराने नष्ट हुए नयचक्रको फिरसे बनाया । - मोरेनावाली प्रतिकी गाथा यदि ठीक है तो उससे केवल यही मालूम होता है कि माइल धवलका देवसेनसूरिसे कुछ निकटका गुरुसंबंध होगा । बम्बईवाली प्रतिकी गाथा माइले धवलसे कोई संबंध नहीं रखती है - वह नयचक्र और देवसेनसूरिकी प्रशंसावाचक अन्य तीन चार गाथाओंके समान एक जुदी हीं प्रशस्ति गाथा है । नीचे लिखी गाथामें कहा है कि दोहा छंदमें रचे हुए द्रव्य स्वभाव प्रकाशको सुनकर सुहंकर या शुभंकर नामके कोई सज्ज - न जो संभवत माइल धवलके मित्र होंगे हंसकर बोले कि दोहामें यह अच्छा नहीं लगता; इसे गाथाबद्ध कर दो :

Loading...

Page Navigation
1 ... 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 ... 194