Book Title: Navkar Mahamantra Vaigyanik Anveshan
Author(s): Ravindra Jain, Kusum Jain
Publisher: Keladevi Sumtiprasad Trust

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Page 10
________________ 8 श्री अरिहंत के 46 मूलगुण चौतीसो अतिशय सहित, प्रातिहार्य पुनि आठ अनन्त चतुष्टय गुण सहित, छीयालोसों पाठ ॥ अतिशय रूप सुगध तन, नाहि पसेव निहार । प्रियहित वचन अतुल्य बल, रुधिर श्वेत आकार ॥ लक्षण, सहस अरु आठ तन, समचतुष्क सठान । वज्रबृषभनाराम जुत, ये जनमत दश जान ॥ योजनशत इक मे सुभिक्ष, गगन गमन मुख चार । नहि अदया उपसंग नहि नाहीं कवलाहार ॥ सब विद्या ईश्वरपनो, नाहि बढे नख केश । अनिमिषद्ग छाया रहित, दश केवल के वेश ॥ देव रचिन है चार दश, अर्द्धमागधी भाष । आपस माहीं मित्रता निर्मल दिश आकाश ॥ होत फूल फल ऋतु सबं, पृथ्वी कांच समान । चरण कमल तल कमल हूं, नभ ते जय जय बान ॥ मद सुगंध बयार पुनि, गधोदक की वृष्टि । भूमि विषे कटक नहि, हर्षमयो सब सृष्टि ॥ धर्म चक्र आगे रहे, पुनि वसु मगलसार । अतिशय श्री अरिहत के ये चौतीस प्रकार || to अशोक के निकट मे, सिहासन छविवार । तीन छन सिर पर लसे भामडल पिछवार ।। दिव्य safe मुखते खिरं, पुष्टवृष्टि सुर होय । ढारं चौसठ चमर जल, बाजं वुवुभि जोय || ज्ञान अनन्त अनन्त सुख दरस अनन्त प्रमान । बल अनन्त अरिहत सो इष्ट देव पहिचान ॥ जनम जरा तिरसा क्षुधा, विस्मय आरत खेद । रोग शोक मद मोह भय, निद्रा चिता स्वेद ॥ रागद्वेष अरु मरण युत, ये अष्टादश दोष । नाहि होत अरिहन्त के, सो छवि लायक मोष ॥ श्री सिद्ध के 8 गुण समकित दरशन ज्ञान, अगर लघु अवगाहना । सूच्छम वीरजवान, निराबाध गुण सिद्ध के ||

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