Book Title: Narbhavdrushtantopnaymala
Author(s): Jinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
View full book text
________________ : नरभवदिटुंतोवनयमाला सव्वेसि भोअणाणं, सिटुं कल्लाणभोयणं नाम / .. . तेयस्सियाण जह रवि, तहा पहाणो मणुअजम्मो ॥१०॥जुम्म / / ___ भावाथ:-जेवी रीते समुद्रोमां क्षीरसमुद्र, द्वीपोमां नंदीश्वरद्वीप, देवोमा इन्द्र ने मनुष्योमा चक्रवर्ती प्रधान छे, सकल भोजनोमां कल्याणनामनुं भोजन अग्रपदे छे ने तेजस्वी पदार्थोमां सूर्य जेम प्रधान छे तेवी रीते अन्यजन्मोमां मनुष्यजन्म पण प्रधान छे आ गाथानो अर्थ युग्म छे // 9-10 // विसयसुहसंपउत्ता, देवा दुहदुत्थिया हु णेरइया / तिरिया पुण अविवेया, धम्माण य साहगा मणुया॥११।। भावार्थ:-देवो विषयसुखमां फसेला छे, नारकीओ दुःखोथी घेरायेला होवाथी विव्हल छे, पशुपक्षी विगेरे तिर्यंचो विवेकवगरना छे त्यारे दानादिधर्मोना साधक मात्र मनुष्यो छे // 11 // रुद्दे य भवसमुद्दे, अइदुल्लहमणुअजम्मलाहटें / एए दस दिळंता, निद्दिट्ठा पूब्धसूरीहि // 12 // . भावार्थ:-आ विषमसंसारसमुद्रमां मनुष्यजन्मनी प्राप्ति अतिदुर्लभ छे ते जणाववा खातर पूर्वाचार्योए नीचे मुजब दश दृष्टान्तो शास्त्रमा देखाडेला छे / 12 / तथाहिचुल्लग पासग२ धण्णे 3, जूए४ रयणे५ य सुमिण६ चक्के७ य / कुम्म८ जुगे९ परमाणु 10, दस दि→ता मणुअजम्मे // 1 //
Page Navigation
1 ... 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 ... 184