Book Title: Narbhavdrushtantopnaymala
Author(s): Jinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ (1) चूल्लकदृष्टान्त : सव्वेसि रयणाणं, चितामणिरयणमइवजुइमत / बछियपूरणदक्ख, तहा गईणमि मणुअत्त / / 6 / / - भावार्थ:-जेम तमामप्रकारना रत्नोमां चिंतामणिरत्न अत्यंत तेजस्वी होवा उपरांत वांछित वस्तुओने पूरी पाडवानी शक्ति धराबे छे, तेवी रीते मात्र मनुष्यगतिज इष्टने परिपूर्ण रीते सिद्ध करी शके छे / 6 / जह सरवराण मज्झे, माणसं सुसरं तओ वि विमलजलं / पउमाणि तओ हंसा, तहा गईणमि मणुअत्तं / / 7 / / भावार्थ:-जेवी रीते सकल सरोवरमां मानसरोवर श्रेष्ठ छे, तेथी पण तेमान पवित्रजल, तेथी तेमांना पद्मो [कमलो] अने तओथी पण हंसो वधारेने वधारे श्रेष्ठ छे, तेवो रीते मनुष्यपणुं पण महापुण्य साध्य होवाथी ने मोक्षचं कारण होवाथी अधिकतर श्रोष्ठ छे // 7 // इह जह नईण गंगा, सव्वविसिट्ठा जणेसु सुपसिद्धा / तह चउगईण मज्झे, भव्वा भवाण मणुअगई // 8 // भावार्थ:-जेम आ दुनियामां सघली नदीओमां गंगानदीनी पवित्रता लोकोमा विशेषप्रसिद्ध छे, तेवी रीते चार गतिओमां मनुष्यगति भव्यप्राणीओने विशेष श्रेष्ठ जणाय छे / / 8 / / जह खीरोअहि जलहिमि, जह दीवाणमि नंदीसरदीवो। जह देवाणय इंदो, जह चक्की सव्वमणुआणं / / 9 / /
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