Book Title: Narbhavdrushtantopnaymala
Author(s): Jinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 13
________________ : नरभवदिटुंतोवनयमाला अर्थात् सर्व कोइ सुरवी होवाथी निश्चित छे / / 15 / / जत्थ य जिणमंदिरोवरि, घणपवणपणोल्लिया पडायाओ / रेहंति व धम्मिय-जण, कित्तीओ सग्गचलियाओ / / 16 / / ___ भावार्थ:-ज्यां जिनेश्वरोना मंदिर उपर प्रचण्डपक्नथी प्रेरायेल ध्वजाओ स्वर्गतरफ चालेल धार्मिक मनुष्योनी जाणे कीतिं न होय तेवी रीते शोभे छे // 16 // तं च अणेगच्छेरय-सारं पालेइ विउलबलकलिओ। इक्खागुवंसवसहो बंभो नामेण नरनाहो / / 17 / / भावार्थ:-विशालबलशाली, इक्ष्वाकुवंशशिरोमणि ब्रह्म नामनो राजा ते अनेक विस्मयजनकसारभूतवस्तुवाळा ते कांपिलपुर नगरने पाळे छे / / 17 / / अइपीवरेहि अइदीहरेहि कत्थ वि अपत्ततोडेहि / जस्स गुणेहि व गुहिं दामिया सइ थिरा लच्छी // 18 // भावार्थ:-अतिमजबुत ने अतिदीर्घ कोइपण स्थले त्रुटी नहि पामेल अर्थात् अखंडित दोरडाओनी पेठे गुणोवडे करीने जेनी लक्ष्मी दमन पामी विशेष स्थिर थइ हती / / 18 / / सामेण य दंडेण य, भेएण उवप्पयाणकरणण / अवसरपत्तेण जसो जेण व वित्थारिओ दूरं / / 19 / / भावार्थ:-जेणे प्रसङ्गने अनुसरता साम, दाम,

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