________________
१०
अर्थः
यहां (श्री महावीर स्वामीके शासन में ) प्रथम गणधर इन्द्रभूति ( श्री गौतमस्वामी) हैं, फिर दूसरे अग्निभूति हैं और तीसरे वायुभूति हैं बाद चौथे व्यक्तस्वामी हैं पांच में श्री सुधर्मास्वामी है ॥ २२ ॥
मूलम्
२ ३
४ ५
मंडियमोरियपुत्ते, अकंपिए चेव अयलभाया य ।
स्थविरावली
६ ७
८ १०
११
९
मेयज्जे य पहासे गणहरा हुंति वीरस्स ॥ २३ ॥
छाया
मण्डित–मौर्यपुत्रावकम्पितश्चैवाचल भ्राता च ।
मेतार्यश्च प्रभासो गणधराः सन्ति वीरस्य ॥ २३ ॥
अर्थः
छ मण्डित और सातमे मौर्यपुत्र गणधर हैं और ऐसे ही आठमे अकम्पित और नवमे अचलभ्राता गणधर हैं । दशवे मेतार्यस्वामी और ग्यारवे प्रभास - स्वामी ये सब श्री महावीरस्वामी के गणधर हैं ॥ २३ ॥
मूलम्
१
६ ५
૨
निव्वुइपह सासणयं, जयइ सयो सवभाव देसणयं ।
३
४
कुसमय मय नासणयं, जिनिंदवर वीर सासणयं ॥ २४ ॥
छाया
निर्वृतिपथ शासनकं, जयति सदा सर्वभाव देशनकम् । कुसमय मद नाशनकं, जिनेन्द्रवरवीरशासनकम् ||२४||
अर्थ
मोक्षमार्ग का शासक सवपदार्थों का उपदेशक और कुसिद्धान्तों के अहङ्कार को नष्ट करने वाला जिनेन्द्रोंमें श्रेष्ट श्री महावीर स्वामी का शासन सर्वोत्कर्ष से सदा विराजता है || २४||