Book Title: Nandi Sutra Tika
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Page 20
________________ Shri Mahavir Jan Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallassagarsuri Gyanmandir नंदी टी० 畢器梁器黑米黑米課業業罪米諾業器洲器默器器 तदेवावन ते अथासंकेति तेन सिहसा शब्दार्थयोर्वास्तव: संबंधति तथा जगदानंद: दह जगच्छब्देन संनि पंचेंद्रियपरिग्रहस्तेषामेव भगवहर्शन देशना दित आनंदसंभवात्ततच जगतां संजिपंचेंद्रियाणा महतस्पंदिसतिदर्शनमावतो नि: यमाभ्युदय साधकधर्मोपदेशहारेण चानंदहेतुत्वादैहिकाधिक प्रमोदकारणत्वाज्जगदानंद: अनेन परार्थसंपदमाह तथा जगबाथः इहजगच्छन्देन सकलचराचरपरिग्रहो नायशब्देन च योगक्षेम वदभिधीयते योगक्षेम कृतनाथ इति विहत् प्रवादात्तता जगत: सकल चराचररूपस्य यथावस्थितस्वरूपमरूपणा हारेण वितथप्ररूपणापायेभ्यः जनाञ्चनाथ इवनाथो जगन्नाथः पनेनापि परार्थसंपदमाह तथा जगबंधु: रजगच्छब्देन सकलपाणिगणपरिग्रह: प्राणिन एवाधिकृत्यबंधुत्वोपपत: ततच जगतः सकलप्राणिसमुदाय रूपस्याप्यापादनोपदेशप्रणयनेन सुखस्थापकत्वात् बंधुरिवबंधुआंगबंधु: सकलजगदव्यापादनोपदेशप्रणयनं च भगवत: सुप्रतीतं तथाचाचारसूत्र मब्बे पाणासवेभूया सजीवा समत्तानहन्तव्बा नमज्जावेयव्या न परिघेतवा न उवहवेयव्वा एसधम्म मुझेधुवेनीए सासए समेच्चलोट खेयन्न हिं पवेइए इत्यादि एतेन संसारमोचकानां व्यापाद्योपकृतये दु:खितमत्वव्यापादनमुपदिशता सकलमार्गप्रकृत्वमावेदितं द्रष्टव्य यतस्त एवमाछः यत्परिणामसंदरं तदापातकटकमपि परेषामाथेयं यथारोगोपथमनमौषधं परिणामसंदरं च दु:खित सत्यानां व्यापादनमिति तथाहि कृमिकीटपतङ्गमसकलावकचटककुष्टि महादरिद्रांधपंग्वादयो दु:खितजंतवः पापकर्मोदयवशात् संसारसागरमभिसवंते ततस्तेषश्वं तत्यापक्षपणाय परोपकारकरणैकरसिकमानसेन व्यापादनी या: तेषां हि व्यापादनेन महादु:खमतीवोपजायते तीबदुःख वेदनाभिभववशाच्च प्राग्वई पापकर्मोदीाँदीर्यानुभवन्तः प्रतिक्षिपन्ति स्यादेतत् किमत्रम माणं यत्त व्यापाद्यमानास्तीन वेदनानुभवतः प्राग्वाडं पापकर्मोदी दीर्यपरिक्षिपंति न पुनरात रौद्रध्यानोपगमतः प्रभूततरं पापमावर्जयन्तीति उच्यते युष्ममिहांतानुगतमेव नारकवरूपापदर्शकं वच: तथाहि नारकानिरंतरं परमाधार्मिकसुरैताडनभेदनोत्कर्त नमूल्यारोपणाद्यनेक प्रकारमुपहन्यमाना: 器器潔张器器茶器端盤點素器恭盟流器器諾諾 For Private and Personal Use Only

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