Book Title: Nandi Sutra Tika
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नंदी टी० 器業狀諾器樂器器器諾諾器器業器器哭器器聚罪業 याण्य वम किमप्यपौरुषेयमस्ति पसंभवात् तथापिशास्त्र वचनात्मकं वचनंच नात्वोष्टपुटपरिस्पंदादिरूप पुरुषव्यापारात्वया व्यतिरेकानुविधायिततस्तद * भावे कथं भवतिन खलु पुरुषव्यापारमंतरेण वचनमाकायेधनदुपलभ्यते अपिच तदपौरुषेयं वचनमकारणत्वाचित्यमभ्युपगम्यते सदकारणवन्नित्यमिति * वचनप्रमाण्यात् ततश्चात्त्रविकल्पयुगलमवतीयते तदपौरुषेयंवच: किंमुपलभ्यख भावमुतानुपलभ्वस्वभाव तत्र यद्यनुपलभ्यस्वभाव ताईतस्य नित्यत्वेनाभ्युप गमात्कदाचिदपि खभावाप्रच्यते: सर्वदेवोपलंभाभावप्रसंग अथोपलंभखभावं तरिसर्वदासुपरमेमोपलभ्यत अन्यथा तत्स्वभावताहानिप्रसंगात् अथोपल भ्य स्वभावमपि सहकारिप्रत्यय मयेक्षोपलंभमुप जनयतितेन न सर्वदोपखंभप्रसंगस्तक्ष्युक्तमेकां नित्यस्य सहकार्यपेक्षाया प्रयोगात् ततोविशेष प्रतिलभ लक्षणाहितस्य तत्रोपे ज्ञावदाइ धर्मकीर्तिरपेक्षाया विशेष प्रतिलभ लक्षणात्वादिति नच नित्यस्य विशेषप्रतिलभोस्ति अनित्यत्वापत्ति: तथाहि सविशेष प्रतिलभस्तात्वात्मभतस्ततो विशेष जायमाने सएष पदार्थस्तेन रूपेण जातोभवति प्राक्तनंत्वविशिष्टावस्था बक्षर्णरूप विनिष्टमित्यनित्यत्वापत्तिः अधोच्चत मविषेष प्रतिलभोनतस्थात्मभत: किंतव्यतिरिक्ततत् कथमनित्यत्वापत्ति: यद्येवंतहि कथंमतस्य सहकारीनहि तेन सहकारिणा तस्य वचनस्थकिमय पकि यते भिन्नविशेषकरणात् अवभिन्बोपि विशेषस्तस्यसंबंधी तेन तत्मबंध विशेष करणात्तस्यास्युपकारी द्रष्टव्यति सहकारीयपदिश्यने नमुवियेषेणापि सह तस्य वचनस्यक: संबंधोनतावत्तादात्म्यं भिन्नत्वेनाभ्यु पगमात् नापि तदूत्पत्तिर्विकल्पहवानतिकमात्तथाहि किंवचनेन विशेषोजन्यते उतविशेषेण बच्चनं तवन तावदाद्यःपेक्षा विशेषस्य सहकारिगोभावात् नापिहितीयोवचनस्यनित्यया कर्तमशक्यत्वात् अथमाभूहचन विशेषयोजन्य जनकभाव आधारा धेवभावो भविष्यति तदप्यसमीचौनाधाराधेय भावस्थापि परोपकार्योपकारक भावापेक्षत्वात् तथाहि बदरंपतन धर्मकं सत्कुडे नखानंतर देशस्थायि तया परिणामिजन्यते ततस्सयोराधाराधेयभाव उपपद्यते वचनेनत नवियेषोजन्य ते तस्यान्वतोभावात्ततः कथमनयोराधाराधेयभावः अथ तेन विशेषेश्वचनस्यो 而架業業张業諾諾米器器器端器器器需器器器誘 For Private and Personal Use Only

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