Book Title: Namaskar Swadhyay Prakrit Vibhag
Author(s): Dhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
Publisher: Jain Sahitya Vardhak Sabha

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Page 19
________________ यंत्र-चित्र परिचय (3) ह्रींकारमध्यस्थितः पार्श्वप्रभुः आ आकारनी प्रतिमा मुंबईना भायखला जैन देरासरमा बिराजमान छ / चित्र जोतां तुरत जणाशे के 'ह्री' कारनी मध्यमां श्री पार्श्वनाथ भगवंतनी मूर्ति प्रतिष्ठित करेली छे / मूर्तिनी जमणी बाजु धरणेन्द्र छे अने डाबी बाजु पद्मावती छे / कला, बिन्दु अने नाद सहित एवा ह्रीकारनी शुद्ध आकृति आपणने अहीं शिल्पमां लब्ध थाय छे / आवी धातुनी मूर्तिओ भाग्य ज जोवा मळे छे अने तेथी आ मूर्तिने विशिष्ट लेखी शकाय। मूर्ति खूब ज पौराणिक छ / आ मूर्ति आरसनी नहि परंतु धातुनी छे एनो ख्याल चित्रमा देखातां अंगो परनां चिह्नो परथी आवे छे / जेवी छे एवी ज तादृश मूर्ति रजू करवा अहीं प्रयास कर्यो छे / . (4) पञ्चपरमेष्ठिमहामन्त्रः विन्सेन्ट ए. स्मिथना उपर्युक्त ग्रंथमांनी प्लेट XII परथी आ चित्र तैयार करवामां आव्यु छे। जेतुं छे एवं ज प्रवेशद्वार दोरवामां आव्यु छे; फक्त नीचे तेनी बे बाजुए बतावेल रक्षिकाओ आ प्लेटमां नथी। स्तूपना आ प्रवेशद्वारनी उपर तोरण छे अने तेनी उपर बन्ने बाजु 'तिलकरत्न' छे, जे 'अष्टमंगल' पैकी एक मंगल छे। आवं 'तिलकरत्न' आ सिवाय बीजी घणी प्लेटोमां (दा. त. VI, VII, X,XI) जोवा मळे छे। बे 'तिलकरत्न'नी वच्चे 'श्रीवत्स' मूकवामां आवेलुं छे। प्रवेशद्वारनी वच्चेनो नमस्कारमंत्रनो मूलपाठ अमे मूकेलो छे। . आ चित्रनी प्लेटने मथाळे नीचे प्रमाणे लखेलुं छे: "Ayagapata or 'Tablet of Homage'. The gift of sivayasa, the wife of the Dancer Phaguyasa." (5) मङ्गलमुखपाठः आ चित्र पण उपर्युक्त विन्सेन्ट ए. स्मीथना ग्रंथमांनी प्लेट VII परथी तैयार करवामां आव्यु छ। आ पण., आयागपट छे, जेमां वच्चेनी जगाए अरिहंत भगवंत पद्मासने स्थित छ। तेओ ध्यानमुद्रामां लीन छे अने शिर पर छत्र शोभी रह्यं छे। तेमनी आजुबाजु चार तिलकरत्न हतां ते न लेतां तेनी जगाए अहीं चत्तारि मंगलादिनो मूळ पाठ मूकेल छे। आ आयागपटनी उपरनी बाजुए चार अने नीचेनी बाजुए चार-एम मळी कुल आठ मंगल आपेलां छ / खूब ज प्रचलित एवां आ 'अष्टमंगल' जैन रीतिनां अति प्राचीन प्रतीको छे। आनाथी प्राचीनपर अने आवी सारी रीते एक साथे जळवायेल 'अष्टमंगल' हजुसुधी बीजे क्यायथी प्राप्त थयां नथी। डॉ. उमाकान्त पी. शाहे पोताना 'Studies in Jaina Art' नामक कलाग्रंथमां आ मंगलोर्नु नीचे प्रमाणे नामकरण कयें छे:___ उपरनी हरोळ (जमणी बाजुएथी)- नीचेनी हरोळ (जमणी बाजुएथी)(१)A pair of Fish(मत्स्ययुगल-मत्स्ययुग्म) (5) A Tilakaratna (तिलकरत्न) (2)A heavenly Car (पवनपावडी) (6) A Full Blown Lotus (पुष्पचंगेरिका-पुष्पगुच्छ) (3)A Srivatsa Mark (श्रीवत्स) (7) An Indrayasti or Vaijayanti (इन्द्रयष्टि or वैजयन्ती) (4)A Powder Box (शरावसंपुट) (8)A Mangala-Kalasa (Auspicious Vase) (मंगल-कलश) मूळ पाठनी बे बाजु आपेल स्तंभो " Persian Achaemenian" रीतिना छे अने प्रत्येक स्तंभनी उपर तथा नीचे भिन्न भिन्न प्रतीको आपेल छे। जमणी बाजुना स्तंभनी सौथी उपर 'धर्मचक्र' छे अने डाबी बाजुना स्तंभनी उपर 'कुंजर' (हाथी) कंडारेल छे। बन्ने स्तंभोनी नीचे पण जुदांजुदां बे प्रतीको छे। आ चारे प्रतीकोनी विसंवादिता शिल्पनी दृष्टिए विचारणीय लागे छे। - जे परथी आ चित्र तैयार कर्यु छे ते प्लेट नं. VII ने मथाळे नीचे प्रमाणे लखेलुं छे: "Ayagapata, or Tablet of Homage or of Worship', set up by Sihanadika for the worship of the Arhats."

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