Book Title: Naishkarmya Siddhi
Author(s): Prevallabh Tripathi, Krushnapant Shastri
Publisher: Achyut Granthmala Karyalaya

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Page 8
________________ ४ ) 1 ( मनन और निदिध्यासन करता है। क्योंकि शास्त्र - प्रतिपादित उपाय से ( अर्थात् श्रवण, मनन और निदिध्यासन द्वारा होनेवाले आत्मसाक्षात्कार से) अन्य कोई भी उपाय इन दुःखोंका निवर्तक नहीं है । इसलिए प्रत्येक पुरुषको शास्त्रकी जिज्ञासा होती है । क्योंकि समस्त दुःखोंकी निवृत्ति और परमआनन्दकी प्राप्ति ही परम पुरुषार्थ है । यहाँ पर कुछ लोग, अर्थ और कामको ही पुरुषार्थ माननेवाले, कहते हैं कि आप्त वैद्योंसे उपदिष्ट औषधोपचार एवं सुमनोहर वनिता, गन्ध, माल्य, नृत्य, गीत आदि विषयोंके सेवनसे जब आध्यात्मिक ( शारीरिक और मानसिक) दुःखोंकी निवृत्ति हो जाती है तथा नीतिशास्त्र के ज्ञान और निर्वाध प्रदेशमें निवास करनेसे आधिभौतिक दुःखोंकी भी निवृत्ति हो सकती है एवं मणि, मन्त्र, औषधि सेवन आदि उपायोंसे आधिदैविक दुःख भी निवृत्त हो ही सकता है । इस प्रकार लौकिक सरल उपायोंसे ही जब समस्त दुःखों की निवृत्ति हो सकती है, तब फिर अनेक जन्मोंके आयास से साध्य होनेवाले शास्त्रप्रतिपादित आत्म-साक्षात्काररूप उपाय में कौन पुरुष प्रवृत्त होगा ? इसका उत्तर यह है कि आयुर्वेदोक्त औषधोपचार आदिसे ज्वर आदि शारीरिक रोगोंकी एकदम निवृत्ति हो जांय और अवश्य निवृत्ति हो जाय यह बात नहीं है । क्योंकि वैद्यों द्वारा निर्दिष्ट औषधिका उपचार करनेपर भी वे सर्वथा नहीं निवृत्त होते, एकबार निवृत्त हो जानेपर भी पुनः उत्पन्न हो जाते हैं । इसी प्रकार मनोज्ञ वनिता आदिके सेवन से काम, आदिकी निवृत्ति नहीं होती; प्रत्युत उसकी और अधिक अभिवृद्धि होती है। इस रीति से तो शारीरिक और मानसिक दुःखोंसे छुटकारा पाना बिलकुल ही असंभव है। यही बात आधिभौतिक और आधिदैविक दुःखोंके विषय में भी समझ लेनी चाहिए । सारांश यह है कि लौकिक उपायोंसे दुःख नहीं निवृत्त हो सकते। यदि कहीं निवृत्त हो भी जाते हैं तो फिर उत्पन्न हो जाते हैं। इसलिए इन दुःखोंकी आत्यन्तिकं और ऐकान्तिक निवृत्तिके लिए अध्यात्मशास्त्रकी जिज्ञासा अवश्य करनी चाहिए |

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