Book Title: Mudrit Jain Swetamber Granth Namawali
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

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Page 7
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ने गुरुश्रीना जवा पछी ते प्रकट थइ शक्यो छे. छतां श्रीमद्नो आभार मंडळ कदीये विसरी शके तेम नथीज. ग्रंथ प्रकाशन, गरीबोने मदद, ज्ञाननुं बहूमान, अभ्यास जेथी समाजना अंग बळ तथा आत्मबळ वधे ते माटे गुरुश्री हमेशां सतत् काळजीपूर्वक सर्वने उपदेश देता रह्या हता. ने तेनेज परिणामे आ ग्रंथ प्रकाशने पामे छे. आ समये अमो मंडळ तरफथी आ कार्य माटे परिश्रम उठावनार वकील वर्धमान स्वरुपचंदनो तथा तेमने वारंवार उपयुक्त मा. हीती आफ्नार साहित्य प्रेमी भाइ वकील केशवलाल प्रेमचंद मोदी. नो आभार मुक्तकंठे मानीए छीए. आ ग्रंथ तैयार करवामां भंडारोमांथी ग्रंथोनी यादीमो लाववी अकारादिमां तैयार करवी, ग्रंथो जोवा लीस्टो ते परथी तैयार करवां, तेने गोठवां, तेनां छपातां मुफस तपासवां विगेरे तमाम कार्यों वकील वर्धमान स्वरुषचंदने स्वतंत्र रीते सोपेला होवाथी तेमां जे जे छे ते तेमने आभारीछे. जोके अमारी धारणा प्रमाणे आ गंथ तैयार थयो नथी. ग्रंथमा आवता आचार्यों साधुओ मुनिवर्योना नामनी आग ळ श्री के श्रीमद् अने पाछळ जी शद्धनो उपयोग करवानुं पण तेमनाथी रही गयुं छे आ माटे सज्जनो दरगुजर करशे. आ ग्रंथ जेवा अनेक उपयुक्त ग्रंथो घणा प्रकाशने पामे ए अमारी सदोदित वांच्छा छे ने गुरुश्रीनी तेवी महदेच्छा हती. ते शाशनदेव सफळ करो एज इच्छा साथे विरपीए छीए. पादरा श्री अ० ज्ञा० प्र० पंडळ फागण सुद १५ । J वकील मोहनलाल हीमचंद, For Private And Personal Use Only

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