Book Title: Mudrit Jain Swetamber Granth Namawali
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal
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आ उतार मंडळे "शुभे यथाशक्ति यतनीयं " ए न्याये आ सत्कार्य उपायुं ने गुरुदेवनी हमेशां महतीं सूचनाओ प्रमाणे आ नामावलि तैयार करवामां आवी अने गुरुश्रीने बतावी प्रेसमां आपी.
प्रेसमा काम घणीज ढीलमां पड्युं, नर्हि तो भा ग्रंथ गुरुश्रीनी हयातीमांज प्रकट थह शक्ते. पण तेमां पुस्तकोनी यादीओतो मळतीज गइ अने काम बघतुं गयुं.
आ नामावलिमां प्रथम गुरुश्रीना फर्मान प्रमाणे एवं ठराववामां आव्युं हतुं के दरेक ग्रंथ अकारथी गोठवी ते ग्रंथ क्यां रचायो कोणे रच्यो कर सालमां रच्यो तेमां वस्तु शी छे तथा तेना पर भावार्थअनुभवार्थ - टीका अवचुरि टबो विगेरे कोणे कोणे क्यारे क्यारे क्यां क्यों भर्या. आम प्रत्येक ग्रंथ पर टुक विवेचन आप शुरुआत आम करी छतां पाछळथी कोण जाणे कया संजोगो बच्चे फेरफार थयो अने हालां प्रसिद्ध थया प्रमाणे ग्रंथ गोठवायो.
आमां छेवटे प्रख्यात फ्रेंच तत्वज्ञ विद्वान डॉ गॅरिनोए सन १८९५ सुधीना जैन ग्रंथोनी नामावलि तथा १९०५ सुधीना शिला लेखो साथै अकारादि पद्धतिथी लेवामां आवी छे.
शरुआतमां ग्रंथोपलब्धस्थाननी सूचि आपवामां आवी हे. मां क्या क्यां पुस्तको मळे छे ते आपवामां आव्युं छे.
तत्पश्चात् ग्रंथोपलब्ध गाम स्थळ संख्या अकारादिथी आपी छे. ते पछी पुस्तक प्रसारक संस्थाओ, जैन ग्रंथ वेचनार बुकसेलरो तथा अन्य संस्थाओ, तेमज मंडळो, सभाओ, समाजो, सोसाइटीओ, कोन्फरन्स, ज्ञान पुस्तक भंडारो; इत्यादिनी नामावलि आपवामां आवी छे.
आ तमाम जोवा सारु अंक अने अक्षरोने माटे संकेतसूचिनां चिन्हो आप्यां छे जेथी पुस्तकोनी नामावलि जोवामां सरळता थाय.
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