Book Title: Mudrit Jain Swetamber Granth Namawali
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

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Page 13
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 10 माथी पाछा आव्या छे तोपण अनुभवीओए बतावेले ठेकाणे लखी पुछतां पण जवाबो मळ्या नथी माटे जे जे लायब्रेरीओमां जणाया के ते ते स्थान पण उपलब्ध स्थानोनो परिचय कराव्यो छे. केटलाक पुस्तकोमा एम जणायुं छे के तेनी कीमतनी जगाए मेट एम लख्या छतां तेना तेज पुस्तक उपर अमुक कीमत पण लखेल जणाइ छ अमुक पुस्तफ कोने कोणे. छपाव्यु, कोणे प्रसिद्ध कर्यु, कोणे संग्रह कयु, कोणे भाषान्तर कयु, कोणे शोध्यु, अगर कोणे बनाव्यु तेनी पण मली आवी तेटली नोंध लेवामां आवी छे. मोटा शहेरमा रहेनारनुं मात्र नामज पुस्तकना डीबाचा उपर आपी शहेरनुं नाम लखेलुं होय पण तेनुं ठेका' जणावनारु पोळ पजार के लतो जणावेलो नथी आq नाम मात्र जडवाथी तपास कर्या छतां पण नकामो प्रयत्न निवडे ते पण ठीक नहिं ए एटला माटे ज्यां ग्रंथ जडयो ते ठेकाणानी नोंघ लीधी छे. . ___ मात्र आगळ जणावेलो पुस्तक प्रसिद्ध करनारी संस्थाओ तया बुकसेलरोनी टीपज चोकस ठेकाणाना माटे उपयोगी साधन छे. ग्रंथ वेचनार नहिं छतां धारण करनाराओनी टीप पण जुदी मापी छे. लायब्रेरीओ छे तेमां रहेलां पुस्तकोनो लाभ लेवाने अनुकुळ पडे तेनी खातर ते नंबरो वारंवार उपलब्धस्थानमां बतान्या छे. पुस्तक वेचनारनां नामो पण आप्यां छे-केटलीक संस्थाओना प्रसिद्ध करेला मंथोमां गंन्यांक नंबर १२ मो. मणको नं. २१, पुष्य नंबर ४६; अने सगे नंबर, विभाग ८, भाग १६ अने गुच्छक विगेरे संज्ञाओ दीवाचा उपर जणाय छे. पण ते ते संस्थाओना For Private And Personal Use Only

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