Book Title: Mohanlal Banthiya Smruti Granth
Author(s): Kewalchand Nahta, Satyaranjan Banerjee
Publisher: Jain Darshan Prakashan

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Page 11
________________ स्व: मोहनलाल बांठिया स्मृति ग्रन्थ बहुमुखी व्यक्तित्व के धनी स्व. मोहनलालजी बांटिया श्रद्धेय श्री मोहनलालजी बांठिया का जन्म वि. सं. १६६५ में चुरू (राजस्थान) में हुआ। आपके पिताजी का नाम श्री छोटूलालजी बांठिया था । शैशवावस्था में ही आपके पिताजी का स्वर्गवास हो गया। आपने बी. काम. तक शिक्षा ग्रहण की। संस्कृत में भी आपने डिप्लोमा ली। आप कुशाग्र बुद्धि एवं मेधावी थे । जैन दर्शन, जैन संस्कृति व जैन आगमों के शोध में अपने जीवन के बहुमूल्य क्षणों को संजोए रक्खा। महासभा द्वारा संचालित आगम प्रकाशन योजना को मूर्तरूप देने में आप अग्रगण्यों में थे । जैन बांग्मय के प्रसार व प्रचार हेतु विभिन्न संस्थाओं के माध्यम से आपने कई गोष्टियां व सेमिनार आयोजित किए, जिसमें देश के लब्ध प्रतिष्ठित जैन विद्वानों ने भाग लिया। जैन विश्व भारती की संस्थापना काल में आपने परामर्शक रहकर संस्था के कार्य को आगे बढ़ाया। आपका स्वर्गवास वि.सं. २०३३ में हुआ । - केवलचन्द नाहटा प्रबन्ध सम्पादक जैन सभा, श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा, श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी विद्यालय तथा ओसवाल नवयुवक समिति के अनेक महत्वपूर्ण पदों का आपने सूझबूझ पूर्वक दायित्व निभाया। जैन भारती के आप वषों तक सम्पादक रहे। गणाधिपति गुरूदेव की कृति 'अग्नि परीक्षा' को मध्य प्रदेश सरकार द्वारा प्रतिबन्धित करने पर जबलपुर उच्च न्यायालय से उस आदेश को निरस्त करवाने में आपने सक्रिय भाग लिया । आपने अपने उत्तरार्द्ध काल में जैन आगमों के गूढ़ विषयों पर शोध कार्य किए। जैन दर्शन समिति की स्थापना की व समिति के माध्यम से आगम विषय पर विवेचन किया व पुस्तकें प्रकाशित हुई, जिसमें पुदगल एक अध्ययन, लेश्या कोष, क्रिया कोष, वर्द्धमान जीवन कोष प्रथम, द्वितीय, तृतीय खंड योग कोष उल्लेखनीय हैं। उनके द्वारा संकलित पाण्डुलिपियों पर प्रकाशन का कार्य अभी चालू है । तत्वज्ञ श्री श्रीचन्द चोरड़िया अपना बहुमूल्य समय दे रहे हैं। Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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