Book Title: Mohan Charitam
Author(s): Damodar Sharma
Publisher: Damodar Sharma
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यते मुनिमएितम् ॥३६॥ सुखेन यत्र वसति जन ईतिविवर्जितः॥ सहर्मो यत्र रमते विरागो विरते यथा ॥३७॥ ब्राह्मणा ब्रह्मनिरताः दत्रियास्त्राणतत्पराः॥ वैश्याश्च यत्र वाणिज्य-पराः शाश्च सेवकाः ॥ ३० ॥ स्वस्वकर्मरता एवं धर्ममाराध्य नक्तितः॥ साधयन्ति चतुर्वर्ग त्रिवर्ग वा यथाबलम् ॥ ३०॥ यत्रानिशं यशःकान्ति-योतिताम्बरमएमलाः ॥ चतुःषष्टिकलावन्तः समाः पदध्येऽपि च ॥ ४०॥चन्ज्ञतिशायिमाहात्म्याः सन्ति लोकाः सहस्रशः॥ तेनेदं प्रथितं लोके नाम्ना चन्पुरं किल ॥४१॥ चकारो वक्ति उष्कर्म तं ज्ञावयति यऊनः॥ तेन चन्पुरं नामा-लनतैतन्मतं मम ॥४२॥सनाढ्या नाम नत्रैका जातिरस्ति बिजन्मनाम् ॥ विद्याविनयसंपन्ना यस्यामुदनवन्
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