________________
शास्त्रं
MAHABAR
युक्त है तथा उस मण्डल के बीच में अष्टमीके चन्द्रमाकी रेखासे उसका मण्डल शोभित है और मङ्गल आदि ग्रहोंसे युक्त है, उस मणिका नाम मणिराज कहागया है ॥ २५ ॥ २६ ॥
અર્થ:--જે મણિ શેવાલજેવા રંગવાલ, હીરા જે ચમતે, મધ્ય ભાગમાં આકાશના રંગને મળતો અને નીચેના ભાગમાં ઉગતા સુયનાં જેવા મંડલવાલે જે મણિ હેાય તે “મણિરાજ કહેવાય છે આવાત ૨૬ મા શ્લોકમાં કહેવા શે૨૫
અર્થ:–અને તે પુર્વોક્ત મણિની અંદર આઠમના ચંદ્રમા જેવી રેખાઓ વડે પ્રકાશમાન મંડલવાલો હોય, અને મંગળ વિગેરે સવ ! કરી ગ્રહના ચિન્હોથી યુકત હોય, તે મણિ મણિરાજ એ પ્રમાણે વખણાયેલ છે. માં ૨૬ मूलम्-सर्व शान्तिकरोदोष-नाशनो विषमर्दकः॥ सर्व सौभाग्य दाताच । पूजितः कल्पितार्थदः॥ २७ ॥2
टीका-मणिराजाख्यमणेः प्रभावमाह सर्वेत्यादिना-समणिराजोमाणिः सर्वशान्तिकरः सवर्था शान्तिकारकोऽस्ति, दोषनाशनो ग्रहादिसमुत्पन्नदोषाणां विनाशकोऽस्ति, विषमर्दको विषप्रभावनाशकोऽस्ति, च तथा सर्व
१(प्रश्न ) ग्रहों के कथनसे सर्वत्र सूर्यादि क्रमसे ग्रहोंका कथन किया गया है फिर यहाँ पर मङ्गल ग्रहका प्रथम कथना क्यों किया ! (उत्तर ) तुम्हारा कथन ठीक है, यहाँपर सूर्यादि ग्रहों की केवल स्थितिमात्र का कथन नहीं है किन्तु जिस क्रमसे उस मणिमें ग्रह विद्यमान हैं वह क्रम दिखलाया गया है, देखो ! उक्तमणि में पहिले मंगल ग्रह है, फिर बुध ग्रह हैं इसी प्रकार अन्य ग्रहों कीभी स्थितिको जानलेना । चाहिये, इसलिये सूर्यादि क्रमको छोडकर यहाँपर मंगलादि क्रम कहा गया है, इसमें कोई दोष नहीं है।