Book Title: Mantungashastram
Author(s): Mantungsuri, 
Publisher: Mahavir Granthmala

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Page 33
________________ मानतुङ्ग शाखं १ स्नानजलपानेन समणिमहा विषहर विषहरउग्रविषविकार नाशकोभवति, यद्वा महा विषः सर्पस्तं हरतीति महाविषहरः, सर्पभयविनिवारको भवतीत्याशयः, तथा दुष्ट दोष वीर्य विघातकः-दुष्टादोषोत्पादका ये दोषः । ग्रहादिकृताः तेषां यदीर्य प्रभावस्तद्विघातको नाशको भवति, विकारोत्पादकभूतग्रहादिदोषनाशको भवतीति यावत् ॥ ३३ ॥ भाषा टीका-इस पूर्वोक्तमणिकी भक्तिपूर्वक पूजा करनेसे यह छ कार्योंको सिद्ध करती है, इसका स्लान जल पीनेसे उग्र विष दूर होता है तथा विकार को उत्पन्न करनेवाले भूत और ग्रह आदि के दोष नष्ट हो जाते हैं ॥३॥ અર્થતે તક્ષક નામનો મણી ભકિતપુર્વક જુદી જુદી તંત્રશાસ્ત્રાનુસાર વિધીથી પુજાય તો છ કર્મ કરનારે છે. અર્થાત મારણ મોહન, સ્તંભન | ઉચ્ચાટન, વશિકરન, વિદશન એ છ કામ કરનાર થાય છે, અને તે તક્ષક મણના સ્નાન જળ (ચરાદક ) ના પીવાથી મહા ઝેરાને નાશ કરનાર છે. ન મટી શકે તેવાં પાપાના પરાક્રમને નાશ કરનાર છે. ૩૩ . १ शान्तिपुष्टि आदि छै कार्यों को सिद्ध करती है, अथवा यज्ञ, स्वाध्याय, दान, याजन, अध्यापन और प्रतिग्रह, ये छै कर्म कहलाते हैं इन छै कर्मोको (छै कमों के फलको) देती है, अथवा षट् कर्मा नाम ब्राह्मणका है इसलिये यहभी अर्थ जानना चाहिये कि ब्राह्मणत्व को करती है ॥२ अथवा सर्प भय दूर होता है।

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