Book Title: Mantungashastram
Author(s): Mantungsuri, 
Publisher: Mahavir Granthmala

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Page 51
________________ भानतुङ्ग शास्त्र १ | पुजा कर लिङ्ग पर से मणियो को उठाले, फिर रत्न पर्वत के शिखरपर जाकर तथा कुण्ड में स्नानकर पीछे देवी की गोद में उन मणियों को रख दे, फिर गरुड के स्थापित लिङ्गका जिस प्रकार पुजा का कार्य किया था वैसा | ही कार्य यहां पर भी करना चाहिये, हाँ यहाँ पर " नमः " पदसे युक्त शकारावि मन्त्र जानना चाहिये, यह जो मन्त्र, तन्त्र और मणिका भेद है यह स्त्री पुरुषोंको लौकिक भोग और मोक्ष को देता है तथा तत्काल फल दायक है, यहाँपर इसका वर्णन अति संक्षेप से किया गया है ॥ ५६ ॥ ५६ ॥ ५७ ॥ ५८ ॥ ५९ ॥ ६० ॥ અઃ-શુભ લક્ષણવાળા મણિએ લીધા પછી શ્રી કેદારેશ્વર આવવુ, અને ગુગળની વનાવેલી એકસાઇ ગાલી ( ર્માણ હોય તે વડી ગાલીઆ મનાવીજે. ) અને મણિએ તે કેદારેશ્વર મહાદેવના લાણ ઉપર મુકવી, ૫ ૫૫ ૫ અથ-સાધક મનુષ્ય, શ્રીકેદારેશ્વર ના બાણને યથા ર્વાિધથી સ્નાન કરાવે, અને શાડષાપચાર પૂજા કરે (લઘુરૂદ્ર અથવા મહારૂદ્રથી જેવીતિ) અને ગૂગળની ૧૦૮ એકસો આઠ ગાલીએ ત્યાં મંદિર ના ચાકમાં હોમવી. હોમમાં હકારાદિલ્હી નમઃ મંત્ર લેવો અને ત્યાં રહેલા भैरवनी पूरी श्रीरेश्वरना सिंगथी भलि बल २. || पई ॥ ५७ ॥ અ”—તેવાર પછી રત્નગરના શિખર ઉપર જઈને, ત્યા રહેલા કુંડમા સ્નાન કરી, ત્યાં રહેલાં દેવીના ખાલામાં તે મણિ મુકવા. ॥ ૫૮ ॥ १ " अपनी पुजासे तथा भैरव की पूजासे प्रसन्न हुआ यह लिङ्ग मेरी कार्य सिद्धि के लिये मुझे इन मणियों को देता है " ऐसा मनमें विचार कर लिङ्ग पर से उन मणियों को उठा ले ॥ २ नमः पद से युक्त शकारादि मन्त्रका निदर्शन संस्कृत टीका के नोट में कर दिया | गया है ॥ ३ पूर्वोक्त हृकारादि तथा शकारादि मन्त्र ॥ ४ तन्त्र शद्वसे गूगलकी गोलियों का रखना तथा उनका होम करना जानना चाहिये || ५ मणियों का भेद पूर्व कहा ही जा चुका है । ६ शीघ्री ॥ ४७

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