Book Title: Mantungashastram
Author(s): Mantungsuri, 
Publisher: Mahavir Granthmala

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Page 54
________________ शास्त्रं मानतुङ्ग १-चाहे किसी पुरुषमें रोष, दोष और कामरूपी अवगुण भलेही हो तथापि जिस पुरुषका लक्ष्मी और मानमें समुन्नत श्रीवीतराग भगवान के गुणों में राग है तथा सुकृतों में लाभ है,वही पुरुष धर्मको जानता है ॥३१॥ | २-चाहें किसी पुरुषमें रोष, दोष और कामरूपी अवगुण भले ही हो तथापि जिस पुरुषका गुणों में HSराग है तथा सुकृतों में लाभ है वही पुरुष-लक्ष्मी और मान में समुन्नत श्रीबीत राग भगवान् के धर्मको जानता है।॥३१॥ -चाहें किसी पुरुषमें रोष, दोष और कामरूपी अवगुण भलेही हो तथापि अतुङ्ग (सर्वोन्नत) || श्रीवीतराग भगवान के गुणों में जिसकाराग है तथा सुकृतों में लाभ है वही श्रीमान् पुरुष धर्म को जानता है ॥६१॥ ४-चाहें किसी पुरुषमें रोष, दोष और कामरूपी अवगुण भलेही हो तथापि जिस पुरुषका गुणों में राग है और सुकृतों में लाभ है वही श्रीमान् पुरुष अतुग (सर्वोन्नत) श्रीबीत राग भगवान के धर्मको जानता है ॥३१॥ ५-चाहें किसी पुरुषमें रोष, दोष और कामरूपी अवगुण भले ही हो तथापि जिस पुरुषका श्रीवीतराग भगवान् के गुणो में राग है तथा सुकृतों में लाभ है वही पुरुष श्रीमानतुग श्रीवीतराग के धर्म को जानता है ॥३१॥ १ क्रोध ॥ २ उक्त अवगुण के होनेपरभी ॥ ३ प्रतिष्ठा, गौरव ॥ १ उच्च, बढ कर ॥ ५ सत्कार्यों ॥ ६ जिनसे बढकर कोईतुङ्ग (उन्नत) नही है ॥ ७ श्रीवीतराग भगवान् के सत्कार्यों के द्वारा जो लाभ उठाता है, अथवा जो निज सकृतों के द्वारा लाभ उठाता है ।।

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