Book Title: Mantri Karmchandra Vanshavali Prabandh
Author(s): Jinvijay
Publisher: Bharatiya Vidya Bhavan

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Page 103
________________ ९४ वाचक गुण विनय र चि त मंत्रीस करि जिनपूज पहिली समरिश्रीनवकार, सागार अणसण लेइ सरणा च्यारि करिय उदार। लूणकर्ण आगइ रणि भिडी सुरलोक लीलालीन, मानवंत पुरुष कहउ किसुं किम थाइ मनमइ दीन । विक्रम ॥ १०५. राजसी मेघा मंत्रि श्रीपरतापसिंह हजूर, परलोकि पहुंतारण करी किम मुडइ जे हुइ सूर। लूणकर्णजी निज राजमुद्रा जयतसीनइ देइ, रवि तेज निज जिम सांझि वेला वेसानरहि ठवेइ॥ विक्रम०॥ हिव जयतसी नृप राज्य पालइ वैरिगजघटसिंह, तेहना सुत कल्याणमल श्रीमालदेव नृसिंह। भीम कान्ह ठाकुरसीह श्रीकसमीरदेवीजात, पूर्णमल्ल सुरजनसिंह अचला मान श्रीरंग कहात ॥ विक्रम०॥ वरसिंह मंत्री तेहनइ थप्पियउ गुणहि गंभीर, शीलवंत वीझादेवि तसु जसजित्त गंगानीर। यांपानयरि छम्मास मदफरसाहि सेवा किध, पुंडरीकगिरिजात्रा तणउ फरमाण करावी लीध॥ विक्रम०॥ गढतणी कूची हाथि जसु सवि देसनउ रखपाल, गिरिविमल-अर्बुद-रैवतइ करि संघनी संभाल। जात्रा करी लाहण दियइ मारगइ मदफरसाहि, बहु मानीयउ मंत्री तिहां आणी निज मंदिर मांहि ॥ विक्रम०॥ १०९ सत्कार जिनि मंडावीयउ युग जैन-प्रवचन-मात, शर चंद्र (१५८२) वरषि देराउरइ जिनकुशलसूरिनी जात। करिवा मत्यउ नवि कर सकइ सांमुहउ आवि बइठ, निसि सुपनी आवी इम कहइ मुझ गडाले करउ रे पइठ । विक्रम०॥ ११०. इहां थकी जात्रा मानिस्युं मत करउ कोइ प्रयास, श्रीगडालातीरथ थयउ सवि पूरवइ मन आस। वरसिंहना सुत हिव थया मेघराज श्रीनगराज, मंत्रि अमर श्रीभोजराज डुंगरसी हसधर हसराज ॥ विक्रम ॥ १११ मेघराजना सुत साहसी थया पदमसी वइरसीह, पदमशीह सुत श्रीचंद मति करि मंत्रिया महिसीह । वइरसिंहना सुत दोइ दीसइ सदारंग-कपूर, हरिराजनउ सुत योध तसु सुत भइरवदास अकूर ।। विक्रम०॥ ११२. भोजराज सुत वर राम कहीयइ अमरसिंह तनूज, सीपा सीहा सीमा सुणीजइ करइ जिनवर पूज। सिंहराज वलि सिवराज हिव सीपा तनूरुह च्यारि, अर्जुन महं खीमसीह सुरजन झाझणसी सुविचार॥ विक्रम०॥ ११३ जेसिहदे जीवराज जगहथ मंत्रि सीहा पुत्र, सीमा तनुज राघव पंचा हम्मीर प्रमुख सुमित्र । रायमल्ल रासा प्रमुख श्रीसिंहराज सुत सुवदीत, घडसीह जगमालादि सुत सिवराजना अधिक विनीत ॥ विक्रम०॥ ११४ डुंगरसीह सुत नरबद भणीजइ तासु सुत परधान, मंत्रि अचल भारहमल्ल लाखणसीह प्रमुख समान । राउ जयतसीहा थप्पियउ मतिमंत श्रीनगराज, गिरिराज श्रीगिरिनारिजात्रा करि भवसागर पाज॥ विक्रम०॥ ११५ प्रतिग्रामि लाहण साहमी घरि करी तिणि अभिराम, अन्यदा श्रीमालदेव भूपति जंगली पुर गाम । लेवा भणी सेना सजी आविवा लागउ जांम, नृप भणइ मंत्री मंत्र करि राखउ अह्मारी मांम ॥ विक्रम ॥ ११६ नगराज मंत्रीसर विमासइ सब्बल श्रीमालदेव, विग्रहइ किम पूजियइ ए स्यु हिवइ सारइ देव । पर निरबल नृपथी काज एहवउ सरइ किणही न आज, एरंड द्रुमि गजराजनी किम भाजइ सबली खाज ॥ विक्रम०॥ ११७ छीलर जलइ मन हउंस पूरइ हंसनी कहि काइ, आभरणि पीत्तल तणे हेमनी हाम नवि पूराइ। सुरताण श्रीसेरसाह सेवा करी कीजइ काम, ए मंत्र करी चाल्यउ नगउ किम लागइ सोनई सांम ।। विक्रम ॥ ११८ करि भेटि करिवर करभ हयवर रंजियउ सुरताण, पाछलि कुमर कल्याण सरसइ मूकीयउ भय जाण । राजलोक पुणि तिहां गयउ हिव तिहांआवीयउ नृपराज, मालस्यु साह्मउ झूझीयउ किम शरभ सहइ घनगाज।विक्रम०॥११९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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